कैप्‍टन विक्रम बत्रा की कहानी | vikram batra Story in hindi

कैप्‍टन विक्रम बत्रा की कहानी, देश के खातिर शहीद होने वाले सिपाहियों की कहानियां अक्‍सर हम सुनते और पढते रहते है। ये कहानियां हमेशा हौसले से भर देती है। यू तो आपने बहुत बहादुर सिपाहियों की बहादुरी के किस्‍सों को सुना है। लेकिन आज की कहानी बाकी कहानियो से काफी अलग और जुदा है। आजादी के बाद जिस एक लडाई में हिन्‍दुस्‍तान के सिपाहियों को सबसे ज्‍यादा मुश्किलों का सामना करना पडा। वो कारगिल की लडाई थी।

इस लडाई दुश्‍मन ऊपर खडे होकर हमले कर रहा है। हमारी फौज को कारगिल की चोटियों पर चढकर दुश्‍मनों को खत्‍म करना था। ये काम बिल्‍कुल भी आसान नही था। लेकिन हमारे जवान कब हार मानने वाले थे। इस लडाई में जिस एक जवान ने दुश्‍मनों को खत्‍म करने की जिम्‍मेदारी अपने कंधों पर ली थी। उसका नाम था कैप्‍टन विक्रम बत्रा। आज हम आपको भारत के इसी अमर शहीद परमवीर चक्र विजेता कैप्‍टन विक्रम बत्रा की कहानी सुनाने वाले है।
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कैप्‍टन विक्रम बत्रा की कहानी

बहादुरो की पूरी जिन्‍दगी चुनौतियों और साहस के किस्‍सों से भरी होती है। इसीलिए किसी जाबाज और बहादुर सिपाई की दास्‍ता सुनानी हो। तो कलमकार के सामने सबसे बडी चुनौती ये होती है कि वो अपनी दास्‍ता की शुरूआत कहा से करे। का‍रगिल की लडाई में दुश्‍मनों को ऊपर कहर बनकर टूटने वाले कैप्‍टन विक्रम बत्रा की दास्‍ता भी कुछ ऐसी है। अभी हाल ही में विक्रम बत्रा की कहानी पर आधारित फिल्‍म शेरशाह रिलीज हुई है। इस फिल्‍म के रिलीज होने के बाद कैप्‍टन विक्रम बत्रा की चर्चा देश भर में हो रही है।  इस लेख में हम आपको विक्रम पत्रा से जुडी हुई कुछ जरूरी जानकारियों को आपके सामने रखने वाले  है।

caption vikram batra

विक्रम बत्रा की जिन्‍दगी की कहानी की शुरूआत हिमाचल प्रदेश के पालमपुर से होती है। पालमपुर में 9 सितम्‍बर 1974 को विक्रम बत्रा का जन्‍म हुआ था। इनकी मा का नाम कमल कांता और पिता का नाम गिरधारी लाल बत्रा है। विक्रम बत्रा का एक भाई और दो बहने है। उनके भाई का नाम विशाल बत्रा और बहनो के नाम सीमा और नूतन है।
बचपन से बेहद शरारती और एक्टिव रहने वाले विक्रम बत्रा को बचपन से आर्मी की यूनिफार्म अपनी तरफ आर्कषित करती थी। वो अक्‍सर अपने बचपन में दूरदर्शन पर आने वाले धारावाहिक परमवीर को देखा करते थे।
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विक्रम बत्रा ने अपनी पढाई की शुरूआत डीएवी स्‍कूल, पालमपुर से की। डीएवी से शुरूआती पढाई करने के बाद वो अपनी आगे की पढाई के लिए केद्रीय विधालय चले है। उनके फौजी बनने की शुरूआत इसी विधालय से हुई। उनके साथ पढने वाले बच्‍चे ज्‍यादातर आर्मी बैकग्राउंड से होते थे। वो अपने दोस्‍तो से अक्‍सर शहीद जवानों के बारे में बात किया करते थे। अपने स्‍कूल के दिनो में बेहद एक्टिव होने के चलते वो बहुत जल्‍द एनसीसी में शामिल हो गये। उन्‍हे एनसीसी में बाकायदा 40 दिनों की ट्रेनिग दी गई। बाद में वो एनसीसी में कैप्‍टन बना दिये गये।
विक्रम को फौजी ही बनना था। वो हर हाल में फौजी बनकर देश की सेवा करना चाहते थे। जब वो अपने कॉलेज में थे। बात 1995 की है। उस वक्‍त वो हांगकांग के मुख्‍यालय वाली शिंपिंग कंपनी में मर्चेंट नेवी के रूप में चुन लिय गये थे। अगर उस वक्‍त वो ये नेवी की नौकरी करते तो अपनी जिन्‍दगी को सैंटल कर सकते थे। लेकिन उन्‍होने ऐसा नही किया। उन्‍होने तो आर्मी में शामिल हेाना था।

अपनी स्‍नातक की पढाई करने के बाद वो एमए करने के लिए पंजाब विश्‍वविधालय चले गये। इस दौरान ही वो सीडीएस की तैयारी में जी जान से लग गये। उन्‍होने सीडीएस की परिक्षा पास भी कर ली।

सीडीएस की परीक्षा पास करने के बाद उन्‍हे भारत सरकार की तरफ से आईएमए में 19 महीने की ट्रेनिंग करने के लिए भेज दिया गया।

अपनी 19 महीने की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उन्‍हे जम्‍मू कश्‍मीर के सोपोर में लेफ्टिनेट के रूप में नियुक्‍त कर दिया। ये जम्‍मू कश्‍मीर का वो ऐरिया था जहा अलगाव वादी लोग अपनी हुकूमत कायम करना चाहते थे।

विक्रम ने जम्‍मू कश्‍मीर राइफल में लेफ्टिनेट के रूप में काम में शानदार काम किया। उन्‍होने सोपोर को अलगाववादियो ये लगभग खाली करा दिया। जम्‍मू-कश्‍मीर में शानदार काम करने के बाद उन्‍हे 1 महीने की ट्रेनिग के लिए जबलपुर भेज दिया गया।

विक्रम बत्रा अपने आप को एक फौजी के तौर पर लगातार अपडेट करते रहे। यही वजह थी कि वो लगातार नई नई ट्रेनिंग लेते रहे।

कारगिल में विक्रम का ये दिल मांगे मोर

3 मई 1999 यही वो दिन था। जब आधिकारिक तौर पर कारगिल की लडाई का ऐलान हो गया। पाक की सेना ऊपर चोटियों पर खडे होकर भारत की आर्मी पर हमले कर रही है। भारतीय सेना के लिए ये लडाई काफी मुश्किल थी। ये लडाई तब ही जीती जा सकती थी जब इंडियन आर्मी कारगिल की चेाटियों पर चढकर दुश्‍मन को खत्‍म करे। सेना ने ऊपर चढने की तैयारी कर ली थी। कैप्‍टन विक्रम बत्रा की टीम को पांउड 5140 को खाली करने की जिम्‍मेदारी दी गई थी। इस मिशन के लिए उनका नाम शेरशाह रखा गया था।

caption vikram batra..cre-ndtv

कैप्‍टन विक्रम बत्रा ने अपनी सूझबूझ और समझदारी से जल्‍द ही 5140 को खाली करा दिया। इन्‍होने अपना कोड वर्ड ये दिल मांगे मोर रखा था। 5140 को जीतने के बाद उनका अगला मकसद पॉइड 4875 को खाली कराना था। इस पांइड को खाली कराने के दौरान एक सिपाई को बचाते हुए मौत हो गई थी। वो 7 जुलाई 1999 को शहीद हुए थे।  
तो ये थी कैप्‍टन विक्रम बत्रा की कहानी, हमे उम्‍मीद है आपको ये कहानी पसन्‍द आई होगी

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