मुक्‍केबाज सतीश कुमार की कहानी। mukkabaaz satish kumar story

मुक्‍केबाज सतीश कुमार की कहानी, आज हम आपको भारतीय उस भारतीय मुक्‍केबाज की कहानी सुनाने वाले है। जो अपने चेहरे पर टॉके लगवाकर रिंग के मैदान में उतरा। जो अपने आखिरी मैच में एक घायल शेर की तरह लडा। वो भले ही टोक्‍यो ओलंंपिक में मेडल नही जीत पाया। लेकिन अपने खेल दौरान उसने जिस तरह का जुनून दिखाया। उसके देखकर करोडो भारतीय उसको झुककर सलाम करने के लिए मजबूर हो गये। हम  भारत की तरफ से मुक्‍केबाजी प्रतियोगिता में टोक्‍यों ओलपिंक हिस्‍सा लेने वाले जिस मुक्‍केबाज की बात कर रहे है। उसका नाम है सतीश कुमार।। सतीश कुमार भले ही मेडल जीतने में सफल ना हुये हो। लेकिन उन्‍होने वो अपने खेल से करोडो भारतीयों का दिल जीतने में कामयाब जरूर हो गये।
भारतीय मुक्‍केबाज सतीश कुमार की चर्चा आज पूरे देश में हो रही है। उन्‍होने भले ही मेडल नही जीता हो। लेकिन वो अपने खेल से लोगो का दिल जीतने में जरूर कामयाब हो गये।  भारतीय मुक्केबाज सतीश कुमार 91   किलोग्राम भार वर्ग में उज्बेकिस्तान के बाखोदिर जालोलोव से हार गए।   सतीश कुमार सात टाके लगवा कर उनके खिलाफ लड़ने उतरे थे।  वह जब रिंग में उतरे तो एक घायल शेर की तरह लड़े लेकिन बाखोदिर  जालोलोव  उन्हें 5-0 की शिकस्त दी। सतीश कुमार की खेलभावना को देखकर बाखोदर जालोलोव भी प्रभावित हुए बिना नही रहे पाये। वो भी शायद ये बात जानते थे कि अगर ये शेर घायल ना होता तो उन्‍हो आसानी से हरा सकता था।  

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खुद घायल होने के बाद भी मैच के दौरान उन्‍होने एक ऐसा पंच मारा जिससे जालोलव भी घायल हो गये। वो इतने जुनूनी होकर बाक्सिग कर रहे थे कि उन्‍हे मानो दर्द का अहसास हो ही नही रहा था। जालोलव का पंच उनकी आंख के पास जाकर लगा जिसकी वजह से उनकी आंख के आसपास लगे टांंके खुल गये। इसके बावजूद वो लडते रहे। लेकिन वह यह मैच जीतने में कामयाब नहीं हो पाए और उनके ओलंपिक का सफर यहीं खत्म हो गया। वह भले ही ओलंपिक में मेडल नहीं जीत पाए लेकिन जिस तरीके से उन्होंने अपना खेल खेला उससे उन्होंने करोड़ों भारतीयों का दिल जीत लिया आज हम भारत के इसी बहादुर मुक्केबाज सतीश कुमार के बारे में आपको बताने वाले है

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भारतीय मुक्‍केबाज सतीश कुमार की कहानी 

सतीश कुमार उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के निवासी हैं। उनका जन्‍म 4 मई 1989 को बुलंदशहर में ही हुआ थो।  सतीश के पिता एक किसान थे। उनके चार भाई-बहन है। वो अपने बचपन में काफी ज्‍यादा शरारती हुआ करते थे। बचपन में कभी उन्‍होने ये नही सोचा था कि वो बडे होकर एक बॉक्‍सर बनेगे। सतीश कुमार  जब अपने स्कूल में थे तो हॉकी और कबड्डी खेला करते थे। वो अपने बचपन को याद करते हुए कई बार बता चुके है कि वह जिस माहौल में रहते थे वहां के लोगों को यह नहीं पता होता था कि ओलंपिक नाम की भी कोई चीज होती है । उन्हें उस वक्‍त खुद भी नहीं पता था कि वह क्या करना चाहते हैं।

सेना ने बदली जिन्‍दगी 

 जब उनके बड़े भाई भारतीय सेना में शामिल हुए तो अपने भाई को देखकर उनकी भारतीय सेना में शामिल होने की इच्छा हुई। भाई को देखकर वो वह भारतीय सेना में शामिल भी हो गये।  भारतीय सेना में शामिल होने के बाद उन्हें  मुक्केबाजी में रुचि पैदा हुई। भारतीय सेना के कोचों ने उन्हें खेल में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें  मुक्केबाजी की बकाया ट्रेनिंग भी दी। यहा से सतीश कुमार की एक मुक्‍केबाज के रूप में पहचान बनने लगी।   

सशस्त्र बल के कोचों ने उन्हें खेल में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्होंने उनकी ताक़त का सही जगह इस्तेमाल करने को कहा। सतीश कुमार ने मुक्केबाज़ी को आसानी से अपने जीवन का हिस्सा बना लिया और जल्द ही घरेलू सर्किट में ख़ुद को स्थापित करने के लिए तैयारी करने लगे। हालाँकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर सफलता मिलने से कुछ समय पहले इस भारतीय मुक्केबाज़ ने ये सुनिश्चित किया कि वो हर गुज़रती बाउट के साथ अपने प्रदर्शन में सुधार करें।

भारतीय सेना में अपने प्रर्दशन को सुधारने के बाद वो मुक्‍केबाजी की नेशनल प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगे। उन्‍होने नेशनल लेवल पर कई अवार्ड जीते। यहा से उन्‍होने अन्‍तराष्‍ट्रीय सफर की शुरूआत हो गई।

पिछले कई महीनों से वो कोरोना वाइरस के चलते अपनी प्रक्टिस नही कर पा रहे थे। जिस बात का उन्‍हे मलाल भी था। कोरोना के दौरान उन्‍होने घर पर मुक्‍केबाजी की प्रक्टिस की। इसी प्रक्टिस के दम पर वो टोक्‍यों ओलपिंक में रिंग के मैदान में उतरे। सतीश कुमार भले मेडल से चन्‍द कदम की दूरी पर रह गये। लेकिन उन्‍होने जिस तरह का खेल खेला है। उससे उन्‍होने देशवासियों को ये मैसेज जरूर दे दिया कि भारत के पास एक बेहतरीन मुक्‍केबाज मौजूद है।

भारतीय मुक्‍केबाज सतीश कुमार का परिवार 
सतीश कुमार की शादी हो चुकी है। उनकी पत्‍नी का नाम सविता कुमार है। इन दोनो के दो बच्‍चे है। सतीश कुमार फिलहाल रानीखेत में रह रहे है।

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