मेजर ध्‍यान चन्‍द्र की कहानी | major dhyan chand story

मेजर ध्‍यान चन्‍द्र की कहानी (जन्‍म, कैरियर, परिवार, नौकरी, रिकार्ड, पुरूस्‍कार) major dhyan chandra ki story (birth,carrier, family,record, awards. Death)

टोक्यो ओलंपिक में भारत के हाकी खिलाडियों ने कमाल का प्रर्दशन किया। चाहे वो महिला हॉकी की टीम हो या पुरूष हाकी की। दोनो ही टीमों ने अपने प्रर्दशन से देशवासियों को गर्व करने का मौका दिया।। भारतीय खिलाडियों के इस प्रर्दशन ने देशवासियों को इस खेल की वो स्‍वर्णिम यादे ताजा करवा दी। जब भारत की हॉकी टीम एक ऐसी चैंपियन टीम हुआ करती थी। जिसे हराना किसी भी टीम के लिए काफी मुश्किल होता था।

ये वो जमाना था जब हॉकी हर हिन्‍दुस्‍तानी का गौरव हुआ करती थी। हॉकी खेलने वाले खिलाडी स्‍टार हुआ करते थे। हॉकी का क्रेज लोगो के सर पर चढा रहता था। ये काफी पुरानी बात है। हममे से लगभग सभी लोगो का उस दौर से राब्‍ता किताबों के जरिये ही हुआ है। किताबो में जिस तरह से हॉकी का स्‍वर्णिम इतिहास हमे दिखाई देता था। हाकी का वर्तमान उससे कही अलग होता था। फिलहाल अब शायद हम हॉकी के उसी स्‍वर्णिम इतिहास की तरफ बढ रहे है।
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हम जिस दौर की बात कर रहे है। वो हॉकी के जादुगर का दौर था। वो उस खिलाडी का दौर था जिसका जन्‍मदिन हम आज भी खेल दिवस के तौर पर बनाते है। हम जिस महान खिलाडी की बात कर रहे है। उसका नाम है मेजर ध्‍यानचन्‍द्र। आज हम आपको हिन्‍दुस्‍तान के इसी हॉकी खिलाडी के बारे में विस्‍तार से बताने वाले है।

मेजर ध्‍यानचन्‍द्र की कहानी

मेजर ध्‍यान चन्‍द्र का जन्‍म 29 अगस्‍त 1905 को यूपी के इलाहाबाद में हुआ। इलाहाबाद तब इलाहाबाद ही हुआ करता है। आज भले ही ये बदलकर प्रयाग हो गया। फिलहाल मेजर ध्‍यान चन्‍द की कहानी पर वापस लौटते है। ये दौर भारत पर अग्रेजी हुकूमत का दौर था। मेजर ध्‍यान चन्‍द के पिता समेश्‍वर सिंह ब्रिटिश आर्मी के सिपाही थे। वो ब्रिटिश सेना की तरफ से हॉकी खेला करते थे। बचपन में ध्‍यानचन्‍द्र काफी शर्मीले स्‍वभाव के थे। उन्‍हे लोगो से मिलना, दोस्‍त बनाना बिल्‍कुल भी पसन्‍द नही था। उनको बचपन से ही हॉकी खेलन में काफी मजा आता था। अपने बचपन में वो पेड की डाली तोडकर उसे हॉकी स्टिक बनाकर हॉकी खेला करते थे। वो धन्‍टो अकेले हॉकी की प्रेक्टिस किया करते थे।
मेजर ध्‍यान चन्‍द्र के पिता चाहते थे कि उनका बेटा पढ लिखकर किसी अच्‍छी सरकारी नौकरी में सिलेक्‍ट हो जाये। लेकिन ध्‍यान चन्‍द्र तो बस अपनी ही धुन में डूबे रहते थे। पढाई से उनका कोई खास लगाव नही था। वो स्‍कूल जाने के बहाने वो किसी खाली जगह पर जाकर हॉकी की प्रक्टिस किया करते थे।
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पढाई के प्रति रूचि ना होने के चलते वो कक्षा 6 तक ही पढ पाये। उनके पिता ने बहुत कोशिश की कि उनका बेटा पढाई में ध्‍यान दे। लेकिन ध्‍यान चन्‍द्र का ध्‍यान तो कही और ही था। घर में काफी गुरबत थी। दो टाइम का खाना भी मुश्किल पडता था। ऐसे में ध्‍यान के पिता अपने बेट को लेकर काफी परेशान रहने लगे। बेटा अगर नौकरी नही करेगा तो जिन्‍दा कैसे रहेगा। यही बात उन्‍हे परेशान करने लगी।
अपने घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए ध्‍यानचन्‍द्र ने आर्मी ज्‍वाइन कर ली। वो इलाहाबाद की बह्रामण रेजीमेंट में शामिल हो गये। जब उन्‍होने आर्मी ज्‍वाइन की थी। तो वो सिर्फ 16 साल के थे। आर्मी में उनकी मुलाकात बाले उनके सीनिया बाले तिवारी से हुई। बाले तिवारी एक अच्‍छे हॉकी खिलाडी भी थे। उन्‍होने जब देखा कि ध्‍यानचन्‍द्र हॉकी मं बहुत दिलचस्‍बी रखते है। तो उन्‍होने उन्‍हे हॉकी सिखाना शुरू कर दी। मेजर ध्‍यान चन्‍द्र के पहले गुरू बाले तिवारी ही थे। ध्‍यान चन्‍द्र ने अपने खेल से बाले तिवारी को बहुत ज्‍यादा प्रभावित किया। वो जिस तरह से अपनी स्टिक घुमाया करते है। उसे देख बाले तिवारी समझ गये थे कि वो जिसे हॉकी सिखा रहे है। वो आने वाले दिनो में हॉकी का जादूगर बनने वाला है।

मेजर ध्‍यानचन्‍द्र का हॉकी कैरियर

मेजर ध्‍यान चन्‍द्र शुरूआती तौर में ब्रिटिश आर्मी की तरह से हॉकी खेला करते थे। उन्‍होने तकरीबन 4 साल ही आर्मी में रहकर ही हॉकी की प्रक्टिस की। उन्‍होने हॉकी खेलने के चलते ब्रिटिश आर्मी में कई प्रोमोशन भी मिले। उन्‍होने 1922 से लेकर 1926 तक ब्रिटिश आर्मी में ही हॉकी खेली।
ध्‍यानचनद्र के हॉकी कैरियर में सबसे बडा बदलाव तब आया जब उन्‍हे नेशनल टीम में न्‍यूजीलैंड दौरे के लिए शामिल किया गया। ये भारतीय हॉकी टीम का पहला विदेशी दौरा था। भारतीय हॉकी टीम पहली बार विदेश में हॉकी खेलने जाने वाली थी। ये 1926 का दौर था। मेजर ध्‍यान चन्‍द भी पहली बार देश से बाहर कही जा रहे थे।
भारत की हॉकी टीम ने न्‍यूजीलैंड में कमाल का प्रर्दशन किया। इस दौरे में कुल 18 मैच हुए। इन 18 मैचों में जिसमे से 15 मैचों में इंडिया को जीत मिली। न्‍यूजीलैंड की टीम केवल 1 मैच ही जीत पाई। बाकी के 2 मैच ड्रा रहे।
न्‍यूजीलैंड दौरे में जिस एक खिलाडी की सबसे ज्‍यादा चर्चा हुई। वो मेजर ध्‍यान चन्‍द्र ही थे। मेजर ध्‍यान चन्‍द ने इस दौरें में 100 से भी अधिक गोल किये। न्‍यूजीलैंड दौरे ने मेजर ध्‍यानचन्‍द्र को रातो रात स्‍टार बना दिया। जब ये टीम वापस इंडिया आई तो मेजर ध्‍यान चन्‍द्र को देखने के लिए लोगो का हुजूम उमड पडा। ध्‍यान चन्‍द के खेल से खुश होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्‍हे सेना में कई अवार्ड दिये। उनका प्रमोशन कर दिया दिया। वो लॉसनायक बना दिये गये।

मेजर ध्‍यान चन्‍द्र की कहानी


अब मजर ध्‍यान चन्‍द्र और हाकी एक दूसरे के पर्यायवाची बन चुके थे। अब बारी थी ओल‍ंपिक की। 1928 में एम्‍सटर्डम में ओलंपिक हुए। यही हॉकी में भारत के स्‍वर्णिम इतिहास की शुरूआत होती है। मेजर ध्‍यान चन्‍द्र की हॉकी अब जादू की छडी बन चुकी थी। जो जब भी चलती थी। उसमें से गोल निकला करते थे। 1928 में उसे इस ओलपिंक में भी ध्‍यान चन्‍द्र ने कमाल कर दिया। मेजर ध्‍यान चन्‍द्र के दम पर भारतीय हॉकी गोल्‍ड मेंडल जीतने में कामयाब हो गई।
इसके बाद हुए ओलंपिक में भारत ने लगातार गोल्‍ड मेडल जीते। 1928 से लेकर 1936 तक भारत लगातार मेजर ध्‍यानचन्‍द के सहारे ओलंपिक में गोल्‍ड मेडल जीतता रहा। उस वक्‍तदुनिया की कोई भी टीम हॉकी में इंडिया का मुकाबला नही कर पा रही थी। भारतीय की गूज दुनिया भर को सुनाई दे रही थी। कोई भी टीम उस दौर में भारत के खिलाफ खेलती थी तो उस टीम का हारना पक्‍का माना जाता था।

जब मेजर ध्‍यान चन्‍द ने हिटलर का ऑफर ठुकरा दिया

1936 के बर्लिन ओलंपिक में इंडिया का फाइनल मैच जर्मनी से हुआ था। अपनी टीम का फाइनल मैच देखने के लिए हिटलर खुद स्‍टेडियम आया था। मैच शुरू हुआ और हमेशा की तरह मेजर ध्‍यान चन्‍द्र ने एक के बाद एक गोल दागने शुरू कर दिये। जर्मनी भारत से लगातार गोल खाये जा रहा है। हिटलर ध्‍यान चन्‍द के खेल से काफी ज्‍यादा प्रभावित हुआ। इस मैच में भारत ने जर्मनी को बुरी तरह हरा दिया। मैच खत्‍म होने के बाद पुरूस्‍कार समारोह के दौरान हिटलर ने ध्‍यानचन्‍द से पूर स्‍टेडियम में आये लोगो के बीच कहा। कि जर्मनी तुम्‍हारे खेल से बहुत ज्‍यादा प्रभावित हुआ है। हम चाहते है तुम जर्मनी की टीम की तरफ से खेलो। इसके बदले में जर्मन सरकार तुम्‍हे मूह मांगी कीमत देने को तैयार है। तुम्‍हे जर्मन आर्मी के उच्‍च पद का अधिकारी बना दिया जायेगा।
1936 मे हिटलर काफी नृशस और सनकी टाइप का तानाशाह था। वो अपनी सनक की वजह से किसी को भी मरवा सकता था। पूरी दुनिया हिटलर से खौफ खाती थी। ऐसे दौर में  पूरे स्‍डेडियम के सामने ध्‍यान चन्‍द्र ने हिटलर से कहा था कि भारत बिकाऊ नही है। ध्‍यान चन्‍द्र की बात सुनकर हिटलर काफी खुश हुआ था। हिटलर ने ही ध्‍यानचन्‍द्र को हॉकी का जादूगर कहा था।

मेजर ध्‍यानचन्‍द्र को कौन कौन से पुरूस्‍कार मिले

मेजर ध्‍यानचन्‍द को 1956 में भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्‍मानित किया था। इसके अलावा भी ध्‍यानचन्‍द्र को कई आवार्ड मिल चुके है।

मेजर ध्‍यान चन्‍द्र की मृत्‍यू कब हुई

मेजर ध्‍यान चन्‍द्र की मृत्‍यू 3 दिसम्‍बर 1979 को हुई। जब उनकी मृत्‍यू हुई तो 74 साल के है।

Major dhyan chandra Born
29 अगस्‍त 1905

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2 thoughts on “मेजर ध्‍यान चन्‍द्र की कहानी | major dhyan chand story”

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