सविता पूनिया की कहानी | गोलकीपर सविता पूनिया की कहानी

सविता पूनिया की कहानी (जन्‍म, गांव, सघर्ष, कोच, पिता, डेब्‍यू, उपलब्धि) goalkeeper savita puniya ki kahani (birthdate, village, struggle, Debut, awards)

टोक्यो ओलंपिक में भारत की महिला हॉकी टीम ने क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश कर लिया है! यह भारतीय महिला हॉकी टीम की ऐतिहासिक जीत है !इससे पहले कभी भी  महिला हॉकी टीम ओलंपिक के सेमीफाइनल में नहीं पहुंची थी। भारत की टीम का सेमीफाइनल में अर्जेंटीना से मुकाबला होना है। अगर इस टीम ने सेमीफाइनल में अर्जेंटीना को हरा दिया तो ऐसा पहला  मौका होगा। जब कोई भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक में मेडल जीतेगी।  भारतीय महिला हॉकी टीम इतिहास बनाने के बहुत करीब पहुंच चुकी है।

सविता पुनिया की बदौलत जीती टीम इंडिया 

क्वार्टर फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया को हराने का सबसे ज्यादा श्रेय इस टीम की जिस खिलाड़ी को चाहता है उसका नाम है सविता पूनिया। सविता प्रिया भारतीय हॉकी टीम की गोलकीपर हैं। यह सविता पूनिया ही का करिश्मा है कि ऑस्ट्रेलिया की टीम क्वार्टर फाइनल मैच में एक भी गोल नहीं कर पाई। ऑस्ट्रेलिया की टीम को पेनाल्टी कार्नर के तहत कई बार गोल दागने का मौका मिला। लेकिन गोल और ऑस्ट्रेलिया की टीम के बीच सविता पूनिया दीवार बन के खड़ी थी। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों के हर अटैक का हिम्मत से सामना किया । ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत की इस दीवार को गिरा नहीं  पाई। सविता पुनिया ने इस मैच के आस्‍ट्रेलिया के 8 पेनाल्‍टी कार्नर अटैक को रोककर अपनी टीम के लिए जीत सुनिश्‍चत कर ली।

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इस तरह भारत ने इतिहास बनाते हुए क्वार्टर फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया की ताकतवर टीम को 2-1 से हरा दिया । यह मैैच सविता पूनिया का मैच था।  हरियाणा के छोटे से गांव से निकलकर टोक्यो में भारत का झंडा बुलंद करने वाली सविता पूनिया की जिंदगी का सफर कैसा है आज इस लेख में आपको सविताा पुनिया की जिन्‍दगी के बारे में बताने वाले है।

 सविता पूनिया की कहानी

भारतीय महिला हॉकी टीम की गोलकीपर सविता पुनिया का  जन्म 11 जुलाई 1990 हरियाणा के सिरसा के जोधरा नाम के गांप में  हुआ।  वह  इस वक्‍त 31 साल की है। उनके पिता का नाम महेंद्र सिंह पूनिया है। महेन्‍द्र सिंह पुनिया पेशे से एक फार्मासिस्ट है। उनकी मां का नाम लीलावती है जो कि एक हाउस वाइफ है।

सविता पुनिया आज जिस भी मुकाम पर है। वो अपने दादा रंजीत पुनिया की वजह से है। अपने दादा रंजीत पूनिया की वजह से ही सविता पूनिया ने हॉकी खेलना शुरू किया। उनके दादा को हॉकी से बहुत ज्‍यादा लगाव था। वो हॉकी देखने के भी बहुत शौकीन थे। एक बार उन्‍होने दिल्‍ली में लडकियों को हॉकी खेलते हुए देखा। ये देखने के बाद से ही उन्‍होने ये डिसाइड कर लिया कि वो अपने परिवार किसी एक लडकी को हॉकी का खिलाडी जरूर बनायेगे। जब सविता पूनिया पैदा हुई तो उन्‍होने ये फैसला कर लिया कि वो अपनी इसी पोती को हॉकी का खिलाडी बनायेगे।

savita puniya

दादा रंजीत पूनिया तो अपनी बेटी ने तो अपनी पेाती को हॉकी का खिलाडी बनाने का फैसला कर लिया। लेकिन सविता को अपने बचपन में हॉकी में कोई रूचि नही थी।  उनके आस पास भी कोई ऐसा नही था जो हॉकी खेलता हो। दादा रंंजीत को ये देखकर काफी दुख होता कि उनकी पेाती हॉकी नही खेल पा रही है। वो अपनी पोती के साथ हॉकी खेल तो नही सकते थे। लेकिन उन्‍होने सविता को हॉकी के बडे बडे खिलाडियों के बारे में बताना शुरू किया। वो सविता को इस खेल से जुड खिलाडियों के किस्‍से सुनाती थे। जिन्‍हे सविता बहुत शौक से सुना करती थी।

गॉव में नही थी कोई हॉकी नर्सरी 

सविता पूनिया के गांव जोधरा में  कोई हॉकी नर्सरी नहीं थी। दादा के बार बार कहने की वजह से उन्‍होने अपने गांव से दूर सिरसा हॉकी नर्सरी में एडमीशन ले लिया। ये नर्सरी उनके गांव से काफी ज्‍यादा दूर थी। उनके पास आने जाने के लिए ऑटों के पैसे नही होते थे। इसलिए उन्‍हे अपने गांव से नर्सरी तक का सफर बस से ही करना पडता था। वो अपने हॉकी की किट लेकर चलती थी। इसलिए कई बार ऐसा होता था कि बस वाला उनके लिए बस रोकता ही नही था।

उन्‍हे किट के साथ बस से सफर करने में काफी दिक्‍कते होती थी। बस का कडक्‍टर उनसे अपनी किट को ऊपर रखने या सीट के अन्‍दर डालने के लिए कहता था। कभी कभी बस में उन्‍हे काफी अपमान का भी सामना करना पडता था। इन सब बातों की वजह से सविता पूनिया घर आकर अकेले कमरे में खूूब रोया करती थी।  एक वक्‍त तो ऐसा भी आ गया था कि इस सब के चलते उन्‍होने हॉकी छोडने का मन बना लिया था। लेकिन उनके पिता अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए उन्‍हे हॉकी खेलने के लिए प्रोत्‍साहित करते रहते थे। एक दिन जब उनके पिता उन्‍हे बताये बगैर उनके लिए अपने रिश्‍तेदारों से पैसे उधार लेकर उनके लिए 18000 रूपये की किट लेकर आये। तो सविता पुनिया को बहुत रोना आया। उसी दिन उन्‍होने तय कर लिया कि अब चाहे कुछ भी हो जाये। वो ना सिर्फ हॉकी खेलेगी बल्कि इस खेल में कुछ बड़ा करके दिखायेगी। उस दिन के बाद से उन्‍होेने कभी पीछे मुडकर नही देखा।

बचपन में अपने क्‍लॉस में काफी लम्‍बी थी सविता पूनिया  

यूं तो सविता को उनके बचपन से ही उनके दादा हॉकी के बारे में बताने लगे थे लेकिन उन्होंने 14 साल की उम्र तक कभी कोई खेल नहीं खेला था। कक्षा ऑठवी पास करने के बाद जब उनके पिता ने उनका एडमीशन हिसार हॉकी नर्सरी में कराया तो वो 2003 का साल। इस नर्सरी में बतौर कोच काम करने वाले सुन्‍दर सिंह ने उनकी हॉइट को देखते हुए उन्‍हे गोलकीपर बनने की सलाह दी। अपने कोच की बात मानकर वो एक गोलकीपर बनने के लिए प्रक्टिस करने लगी।

शुरूआत में उन्‍हे गोलकीपिग करना काफी खराब लगता था।  आपको शायद नही पता होगी हॉकी में  गोलकीपर बनने के लिए लगभग 15 किलो का वजन शरीद पर लादना होता है। गोलकीपिग करने के वजह से शुरूआत में उनके काफी चोटो भी आई। लेकिन इन सभी चोटो की परवाह ना करते हुए उन्‍होने अपनी प्रक्टिस को जारी रखा।

2008 में किया था इन्‍टरनेशनल टीम में डेब्‍यू 

कई सालों की प्रक्टिस के बाद वो समय आया जिसका सविता को एक लम्‍बे अरसे से इन्‍तेजार था। साल 2008 में 18 वर्ष की उम्र में उन्‍हे अपना अन्‍राष्‍ट्रीय मैच खेलने का मौका मिला। ये उनके और उनके परिवार के लिए गौरव के क्षण थे।  अपने डेब्‍यू के दिन को याद करते हुए उन्होंने एक बार कहा भी था कि जब उन्होंने पहली बार भारतीय हॉकी महिला टीम की जर्सी पहनी तो उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हुआ कि वह भारतीय टीम की तरफ से खेल रही है। वो दिन उनके लिए एक यादगार दिन था। वो दिन है और आज का दिन है। उन्‍होने कभी पीछे मुडकर नही देखा।
सविता ने अपने हॉकी के कैरियर में कई कृतिमान स्‍थापित किये है। उनकी बदौलत भारतीय टीम ने जुनियर ऐशियाकप में कॉस्‍य पदक जीता। इसके अलावा हॉकी ऐशिया कप को कौन भूल सकता है। ये ऐशिया कप 2017 में हुआ। भारतीय महिला हॉकी ने इस ऐशिया कप को जीतकर इतिहास रच दिया। इस वर्ल्‍ड कप को जीतने के बाद ये पक्‍का हुआ था कि भारतीय महिला हॉकी टीम वर्ल्‍ड कप और ओलंंपिक भी खेलने वाली है। इस ऐशिया कप में भी सविता ने बतौर गोलकीपर कमाल का प्रर्दशन किया था।

सविता पूनिया के बचपन का एक किस्‍सा

सविजा की कामयाबी में उनके पिता का भी काफी अहम रोल रहा है। ये जानते हुए भी कि विमेन हॉकी में कोई खास फ्यूचर नही है। वो अपनी बेटी लगातार सपोर्ट करते रहे।  जब सविता स्‍कूल में थी तो उनके पिता सविता के स्‍कूल के एक टीचर से हॉकी को लेकर बात कर रहे थे। उन्‍होने टीचर को बताया कि वो अपनी बेटी को हॉकी के क्षेत्र में ले जाना चाहते है। उनकी बात सुनकर टीचर ने मजाकिया लहजे में कहा कि हॉ सही। आपकी बेटी खूब उछलकूद करते है। हॉइट भी अच्‍छी है। उसे खेल में ही डाल दीजिये। हो सकता है अपने खेल की वजह से ही उसे देश विदेश में घूमने का मौका मिल जाये।    तब उनके पिता ने उस टीचर की बात को हसकर टाल दिया। उन्‍हे उस वक्‍त क्‍या मालुम था कि उनकी बेटी आगे चलकर भारतीय टीम को ओलपिंंक के सेमीफाइन में पहुंचायेगी।

सविता पूनिया के अवार्ड 

सविता पुनिया को भारत सरकार की तरफ से 2018 में  अर्जुन पुरूस्‍कार मिल चुका है। इसके अलावा भी वो अब तक कई पुरूस्‍कार जीत चुकी है।

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