सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय (जन्म, शिक्षा, कार्य, इतिहास, सघर्ष, विचार, विवाह, मृत्यू)
महिला शिक्षा को लेकर समाज में उजाले की एक नई किरण जगाने वाली सावित्री बाई फुले का आज ना केवल भारत के लोग बल्कि पूरी दुनिया के लोग जानते है। सावित्रीबाई फुल अज्ञानता के उस दौर में ज्ञान की अलख जगाई थी जब लडकियों को स्कूल तक नही जाने दिया जाता था। उन्होने ऐसे दौर में महिलाओ को शिक्षा के लिए ना केवल प्रेरित किया बल्कि उनके लिए महिलाओ का भारत में पहला स्कूल भी खुलवाया। आज अगर महिलाये शिक्षा के क्षेत्र में बडे बडे मुकाम हासिल कर रही है उसमे कही कही सावित्री बाई फुल का एक अहम रोल है। सावित्रीबाई फुले ने ही महिलाओ को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया था। अपनी पूरी जिन्दगी महिलाओ की शिक्षा को लेकर काम करने वाली सावित्रीबाई फुले की जिन्दगी के बारे में अगर आप विस्तार से जानना चाहते है। तो इस लेख को पूरा जरूर पढे। इस लेख में हम आपको सावित्री बाई फुले के बारे में विस्तार से बताने वाले है।

सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय
अब हम आपको सावित्री बाई फुले के बारे में विस्तार से बताने वाले है।
सावित्रीबाई फुले की शुरूआती जिन्दगी
सावित्रीबाई फुले (सावित्रीबाई फुले – विकिपीडिया) की जिन्दगी की शुरूआत 3 जनवरी 1831 को हुई। 3 जनवरी 1831 को सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नयागांव में एक दलित परिवार मे हुआ है। उनकी मां का नाम लक्ष्मी फुले और पिता का नाम खन्दौजी नैवेसे था। ये वो दौर का जब समाज में महिलाओ की स्थिति काफी खराब थी। बाल विवाह का चलन था इसलिए लडकियो की बचपन में ही शादी करा दी जाती है। ऐसे दौर में पैदा होने वाली सावित्री बाई फुले का विवाह भी काफी कम उम्र में हो गया था। जब सावित्रीबाई फुले का विवाह हुआ तो वो सिर्फ 9 साल की थी।
सावित्री बाई फुले का विवाह नौ साल की उम्र में ज्योतिराव गोविंदराव फुले साथ हो गया है। सावित्रीबाई फुले के पति ज्योतिराव फुले भी खुद एक प्रगतिशील विचारो वाले व्यक्ति थेे। सावित्रीबाई फुले बचपन से ही पढना लिखना चाहती थी। शादी से पहले वो स्कूल तक नही जा पाई थी। जब ज्योतिराव फुले को अपनी पत्नी की इच्छा के बारे में बता चला तो उन्होने अपनी पत्नी को शिक्षा को लेकर काफी प्रेरित किया और उनका दाखिला स्कूल में करा दिया। सावित्रीबाई फुले ने शादी के बाद जमकर पढाई की।
सावित्रीबाई फुले के लिए स्कूल जाकर शिक्षा प्राप्त करना उतना आसान नही था। उस दौर में महिलाओ का स्कूल जाना काफी बुरा माना जाता है। सावित्रीबाई फुले को स्कूल जाने की वजह से अपने आसपास के लोगो और अपने रिश्तेदारो का काफी विरोध झेलना पडा। कई बार तो जब वो स्कूल जाती तो लोग उनपर पत्थार फेकना शुरू कर देते। तमाम विरोधो और तकलीफो को झेलने के बाद ही सावित्रीबाई फुले ने अपने कदम नही रोके। वो लगातार आगे बढती रही। शिक्षा हासिल करने के इस रास्ते में सावित्रीबाई फुले को अपने पति का भरपूर साथ मिला। ज्योतिराव फुले अपनी पत्नी के लिए हमेशा ढाल बनकर खडे रहे।
अपनी भरपूर मेहनत और अपने पति के सहयोग से उन्होने शिक्षा हासिल कर ली। उन्होने 1847 में अपनी दसवी की परिक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होने अहमतदनगर और पुणे में शिक्षक बनने की ट्रेनिग ली। सावित्रीबाई फुले की जिन्दगी की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक वो थी जो उन्हे एक ईसाई धर्म प्रचारक ने दी थी। उस पुस्तक ने सावित्रीबाई फुले की जिन्दगी को पूरी तरह से बदलकर रख दिया।
शिक्षा हासिल करने के बाद सावित्रीबाई फुले को ये समझ में आ गया था कि उन्हे समाज में महिलाओ की दशा को बदलना है तो उन्हे महिलाओ को शिक्षित करना ही पडेगा। अपने इसी विचार को साकार रूप देने के लिए उन्होने देश में महिलाओ के पहले स्कूल की नीव रखी। उनके इस काम में भी उन्हे अपने पति का पूरा सहयोग मिला। शुरूआत में समाज कर भारी विरोध झेलने के बाद ज्योतिबा फुले महिलाओ को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के अपने मिशन में कुछ सफलताये हासिल करने लगी।
उन्होने घर घर जाकर अपने स्कूल में महिलाओ को आने के लिए कहा। उनकी बात का महिलाओ के ऊपर काफी असर हुआ। महिलाये उनके स्कूल में आने लगी। धीरे धीरे ज्योतिबा फुले का स्कूल महिलाओ से भरने लगा। उनकी टीम बढने लगी। महिलाओ को सावित्रीबाई फुले की बात समझने आने लगी। उनके स्कूल से शिक्षा हासिल करने वाली कई महिलाओ ने बाद में फिर अपने स्कूल भी खोले।

सावित्रीबाई फुले के विचार
- शिक्षा स्वर्ग का द्वार खोलती है, खुद को जानने का अवसर देती है।
- कोई तुम्हें कमजोर समझे, इससे पहले तुम्हे शिक्षा के महत्व को समझना होगा।
- स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, शिक्षा ही इंसानों का सच्चा आभूषण है।
- अज्ञानता को तुम धर दबोचो, मज़बूती से पकड़कर पीटो और उसे अपने जीवन से भगा दो
- स्त्रियां सिर्फ रसोई और खेत पर काम करने के लिए नहीं बनी है, वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती है।
- पत्थर को सिंदूर लगाकर और तेल में डुबोकर जिसे देवता समझा जाता है, वह असल मे पत्थर ही होता है।
- देश में महिला साक्षरता की भारी कमी है क्योंकि यहां की महिलाओं को कभी बंधन मुक्त होने ही नहीं दिया गया।
- तुम गाय,बकरी को सहलाते हो, नाग पंचमी पर नाग को दूध पिलाते हो, लेकिन दलितों को तुम इंसान नहीं, अछूत मानते हो।
- चौका बर्तन से ज्यादा जरूरी है पढ़ाई
- क्या तुम्हें मेरी बात समझ में आई?
- इस धरती पर ब्राह्मणों ने स्वयं को स्वघोषित देवता बना लिया है।
- अगर पत्थर पूजने से बच्चे पैदा होते तो नर नारी शादी ही क्यों करते।
- अपनी बेटी के विवाह से पहले उसे शिक्षित बनाओ, ताकि वह आसानी से अच्छे-बुरे का फर्क कर सके।
- किसी समाज या देश की प्रगति तब तक असंभव हैं, जब तक वहां की महिलाएं शिक्षित ना हों।
- आखिर कब तक तुम अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को सहन करोगी। देश बदल रहा है, इस बदलाव में हमें भी बदलना होगा। शिक्षा का द्वार जो पितृसत्तात्मक विचार ने बंद किया है, उसे खोलना होगा।
- जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, मेहनती बनो, आत्मनिर्भर होकर काम करो, ज्ञान और धन एकत्रित करो। ज्ञान के बिना सब खो जाता है। ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है, इसलिए खाली मत बैठो, जाओ जाकर शिक्षा ग्रहण करो।
- मेरी कविता को पढ़ सुनकर यदि थोड़ा भी ज्ञान प्राप्त हो जाए, तो मैं समझूंगी मेरी मेहनत सार्थक हो गई। मुझे बताओ सत्य निडर होकर कि कैसी है मेरी कविताएं… ज्ञान परख यथार्थ मनभावन या अदभुत… तुम ही बताओ।
- एक सशक्त और शिक्षित स्त्री सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है। इसलिए तुम्हारा भी शिक्षा का अधिकार होना चहिए। कब तक तुम गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी रहोगी। उठो और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करो।
- ब्राह्मणवाद केवल मानसिकता नहीं, एक पूरी व्यवस्था है। जिससे धर्म के पोषक तत्व देवी-देवता, रीति-रिवाज, पूजा-पाठ आदि गरीब दलित जनता को अपने में काबू में रखकर उनकी उन्नति के सारे रास्ते बंद करते हैं और उन्हें बदहाली भरे जीवन में धकेलते आए हैं।
- गरीबों और जरूरतमंदों के लिए हितकारी और कल्याणकारी कार्य शुरू किए हैं। मैं अपने हिस्से की जिम्मेदारी भी निभाना चाहती हूं। मैं आपको यकीन दिलाती हूं कि मैं आपकी हमेशा सहायता करुँगी। मैं कामना करती हूं कि ईश्वरीय कार्य अधिक लोगों की सहायता करेंगे
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सावित्रीबाई फुले का इतिहास
सावित्रीबाई फुले का जन्म उस दौर में हुआ था जब भारत में अग्रेजो की सरकार हुआ करती थी। ये वो दौर था जब समाज में बाल विवाह, सतिप्रथा और छुआछूत जैसी कुप्रथाये चलन मे थी। ऐसे दौर में पैदा होने वाली सावित्री बाई फुले ने जब महिलाये की ऐसी दयनीय हालत को देखा तो वो काफी परेशान हुई। उन्होने अपने बचपन मे ही ये फैसला कर लिया था कि वो महिलाओ को इस तरह की मानसिक गुलामी से आजाद कराने का प्रयास करेगी।
ज्योतिबा फुले ने अपनी पूरी जिन्दगी महिलाओ का आगे बढाने के प्रयास मे लगा दी। अपने इन प्रयासो की वजह से सावित्रीबाई फुले को कई तकलीफो से होकर भी गुजरना पड़ा। जब वो स्कूल जाती थी तो लोग उनपर पत्थर मारते थे। वो एक सफेद साडी पहनकर अपने स्कूल की तरफ निकलती थी जिसपर लोग इतनी गंदगी फेकते थे कि जब वो स्कूल पहुचती थी तो उनकी साडी पूरी तरह से गंंदी हो जाया करती थी। ज्योतिबा को हर दिन स्कूल पहुचकर अपनी गंदी साडी बदलनी पडती थी।
सावित्री बाई फुले ने ना केवल खुद शिक्षा हासिल की बल्कि अपने जैसी अन्य महिलाओ को भी शिक्षा के लिए प्रेरित किया। उन्होने पढने लिखने के बाद पुणे में ही एक महिला विधालय की नीव रखी। 1854 में उन्होने विधवाओ के लिए एक आश्रम भी खोला। कुछ सालो के बाद उनका आश्रम एक बडी संस्था मेंं बदल गया। सावित्री बाई फुले के आश्रम में खासतौर पर उन महिलाओ और लडकियो को जगह मिलती थी जो या तो विधवा हो चुकी होती थी या उन्हे उनके परिवार ने छोड दिया होता था। सावित्री बाई फुले ऐसी महिलाओ का ना केवल पूरा ख्याल रखती थी बल्कि उन्हे अपने पैरो पर खडा करने की कोशिश भी करवाती थी। इस आश्रम सिलाई, बुनाई, रंगाई जैसे कई काम भी महिलाओ को सिखाये जाते थे ताकि वो अपने खुद का रोजगार हासिल कर सके।
सावित्रीबाई फुले का जीवन संघर्ष
Savitribai Phule Biography In Hindi | सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय
Name/नाम | सावित्रीबाई फुले |
Know For/जानी जाती | भारत की पहली महिला टीचर के रूप में |
DOB/जन्म तिथि | 3 जनवरी 1831 |
Birthplace/जन्म स्थान | महाराष्ट्र में |
Work/काम | शिक्षक, समाजसेवी |
Family/परिवार | पिता – खांडोजी नवसे पाटिल माता – लक्ष्मीबाई |
Husband /पति | पति – ज्योतिराव फुले |
Religion/धर्म | हिन्दू |
Death/निधन | 10 मार्च 1897 |
Age ( At The Time Of Death) आयु | 66 वर्ष |
Nationality/राष्ट्रीयता | भारतीय |
सावित्रीबाई फुले का निधन
अपनी पूरी जिन्दगी महिलाओ की तरक्की के लिए काम करने वाली सावित्रीबाई फुले अपने पति ज्योतिराव फुल की मृत्यू के बाद पूरी तरह से टूट गई। अपनी पति की मृत्यू के तकरीबन 7 साल के बाद महाराष्ट्र में फैली प्लेेग की बीमारी में उनकी भी मृत्यू हो गई। सावित्री बाई की मृत्यू 10 मार्च 1897 को हुई। उन्होने महिलाओ की तरक्की और जिन्दगी को बदलने के लिए जो काम किये उन्हे आज भी काफी याद किया जाता है।
सावित्रीबाई फुले का जन्म कब हुआ था
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था
सावित्रीबाई फुले कौन थी
सावित्रीबाई फुले एक नारीवादी लेखक, अध्यापक, कवित्री, महिला नेता और चिंतक थी
सावित्रीबाई फुले की मृत्यू कब हुई थी
सावित्रीबाई फुले की मृत्यू 10 मार्च 1897 को हुई थी।
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इशात जैदी एक लेखक है। इन्होने पत्रकारिता की पढाई की है। इशात जैदी पिछले कई सालों से पत्रकारिता कर रहे है। पत्रकारिता के अलावा इनकी साहित्य में भी गहरी रूचि है।