बकरीद मुसलमानो का ईद के दूसरा प्रमुख त्योहार है। bakrid kyu banai jati hai और इस त्योहार का इतिहास क्या है। आज इस लेख में हम आपको बकरीद के बारे में विस्तार से बताने वाले है

बकरीद का इतिहास क्या है
bakrid kyu banai jati hai, इस सवाल से पहले आपको ये जानना बहुत जरूरी है कि बकरीद का इतिहास क्या है। इस्लाम धर्म का इतिहास भले ही तकरीबन 1500 साल पुराना हो। लेकिन बकरीद का इतिहास इस्लाम धर्म के सस्थापक मोहम्मद साहब से भी काफी पुराना है। इस्लाम धर्म की शिक्षाओं के अनुसार हजरत मोहम्मद साहब से पहले भी अल्लाह अपने पैगाम को दुनिया में पहुंचाने के लिए नबियों को भेजा करता था। हजरत मोहम्मद साहब अल्लाह के आखिरी नबी थे। अल्लाह ने दुनिया में तकरीबन 1 लाख 40 हजार नबी भेजे। इन्ही नबियो में से एक नबी का नाम था हजरत इब्राहिम। हजरत इब्राहिम हजरत मोहम्मद साहब के पूर्वज भी थे और उन्होने ही सबसे पहले दुनिया में ऐकेश्वरवाद की बुनियाद रखी थी। हजरत इब्राहिम के बेटे का एक बेटा था जिसका नाम था हजरत इस्माईल। हजरत ईब्राहिम की पत्नी का नाम हाजरा था। हजरत इब्राहिम अपने बेटे को बहुत प्यार करते थे क्योकि 80 साल तक निसन्तान रहने के बाद उन्हे पुत्र की प्राप्ति हुई थी। वो अपने बेटे को अपनी जान से भी ज्यादा चाहते थे।

एक दिन हजरत इब्राहिम ने ख्वाब में देखा कि अल्लाह उन्हे अपने दिल के सबसे करीब किसी चीज की कुबार्नी करने का आदेश दे रहा है। उन्होने अपने सपने में देखा कि वो अल्लाह की राह में अपने हाथो से अपने बेटे का कत्ल कर रहे है। रात को इस ख्वाब को देखने के बाद जब वो सुबह उठे तो उन्हे समझ में आ गया कि अल्लाह उनका इम्तेहान लेने की कोशिश कर रहा है।
हजरत इब्राहिम ने सुबह उठकर अपने बेटे से अपने ख्वाब को लेकर बात की। उन्होने अपने बेटे से कहा कि बेटा मैने अपने ख्वाब में तुम्हे अपने हाथो से जिबाह करते हुए देखा है। तो बताओ अब इस ख्वाब को लेकर तुम्हारी क्या राय है। हजरत ईस्माईल अपने पिता की बात सुनते ही समझ गये कि अल्लाह उनसे कोई बड़ा इम्तेहान लेने की कोशिश कर रहा है। उन्होने अपने पिता की बात सुनते ही कहा कि अगर अल्लाह की यही मर्जी है तो आपको ये काम बिना देरी किये कर देना चाहिए। मै अल्लाह की मर्जी के खातिर आपके हाथो से जिबाह होने को तैयार हूं। अगर अल्लाह चाहेगा तो आप मुझे सब्र करने वालो में पायेंगे।
इस बात को सुनकर अगर आपके दिमाग में ये ख्याल आता है कि अल्लाह क्यो किसी बाप से अपने बेटे को कत्ल करने की बात कहेगा। लेकिन असल में इस पूरे वाकिये को अगर आप गौर से देखेगो तो यहा अल्लाह हजरत इब्राहिम के सब्र और इम्तेहान को आजमाना चाह रहा था। फिलहाल ये कहानी आगे बढ़ती है। हजरत इब्राहिम साहब अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए अपने बेटे को जिबाह करने के लिए मिना नाम के एक मैदान की तरफ चल पड़ते है। वो अपने साथ एक छुरा और पट्टी भी लेते है ताकि जब वो अपने बेटे को अपने हाथो से कत्ल करते हो तो अपनी आंखो से अपने बेटे का कटता हुआ गला ना देख पाये। मिना नाम के मैदान में पहुंचने के बाद वो अपने बेटे को जमीन पर लिटा देते है।
वो अपनी आंखो में पट्टी बाधकर अपने बेटे को जिबाह करने की तैयारी करने लगते है। लेकिन तभी अल्लाह अपने फरिश्तो को हुक्म देता है कि हजरत इस्माइल की जगह पर किसी दुम्बे को लिटा दिया जाये। अल्लाह के इस हुक्म अन्जान हजरत मोहम्मद जब अपने बेटे पर छुरा चलाते है तो उनके बेटे की जगह पर दुम्बा आ जाता है। फिर क्या था दुम्बे की गर्दन कट जाती है और हजरत इस्माईल बच जाते है। बकरीद का इतिहास हजरत इब्राहिम की इसी कुबार्नी से जुड़ा है। हजरत इब्राहिम की अल्लाह की राह मे की गई इसी कुर्बानी की याद में आज तलक दुनिया भर में रहने वालो मुसलमान ईद के मौको पर कुबार्नी की रस्म को अन्जाम देते है।
bakrid kyu banai jati hai : बकरीद कैसे बनाते है
इस लेख को यहा तक पढ़ने के बाद आपको ये तो समझ में आ गया होगा कि बकरीद का इतिहास क्या है। हम हम आपको बताते कि दुनिया भर में इस्लाम धर्म को मानने वाले करोड़ो मुसलमान बकरीद कैसे मनाते है। मुसलमानो के लिए बकरीद का दिन काफी बरकतो वाला दिन होता है। इस दिन मुसलमान सुबह उठकर सबसे पहले नहाते है फिर नहाकर नये कपड़े पहनने है। अपने कपड़ो इत्र लगाते है फिर ईदगाह में नमाज पढ़ने के लिए जाते है। बकरीद की नमाज मुसलमानो के लिए बहुत स्पेलश और अलग तरह की होती है। इस नमाज के बाद मुसलमान दुआ करते है। फिर एक दूसरो को बकरीद की मुबारकबाद देते है। जब बकरीद को लेकर ये सारी रस्मे पूरी हो जाती है तो मुसलमान अपने घर जाते है और अपने अपने बकरो की कुबार्नी करते है। बकरो की कुबार्नी करने के बाद वो इस कुबार्नी को गोश्त को तीन हिस्सो में बाट लेते है।
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जिसका पहला हिस्सा वो गरीबो में बाट देते है। इस गोश्त के दूसरे हिस्सो को वो अपने रिश्तेदारो में बाट देते है। बाकी जो तीसरा हिस्सा बचता है उसे वो खुद अपने घर में पकाकर खा जाते है। वो मुसलमान जिनके पास हज करने का पैसा होता है वो बकरीद के कुछ दिन पहले ही हज के लिए निकल जाते है और मक्का में हज की सारी रस्मो को पूरा करने के बाद वही अपनी कुबार्नी को अन्जाम देते है। वो मुसलमान जो इस मौके पर हज में जाते है वो हज पर एक ऐसी रस्म को भी पूरा करते है जिसमे वो एक शैतान नाम के बड़ी सी चट्टान को पत्थर मारते है। इस शैतान का इतिहास भी हजरत ईब्राहिम साहब के कुबार्नी के इतिहास से जुड़ा हुआ है। दरअसल ये शैतान नाम का पत्थर ही वो जगह है जहा पर ईब्राहिम को शैतान ने भटकाने की कोशिश की थी। ताकि वो अपने बेटे की कुबार्नी को टाल खुदा के हुक्म की नाफरमानी कर सके।
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बकरीद का नाम बकरीद कैसे पड़ा
मुसलमानो के जिस त्योहार को हम बकरीद के नाम से जानते है। उस त्योहार का असली नाम हैईद उल-अज़हा। दरअसल मुसलमानो दो तरह की ईद मनाते है। एक ईद है ईद-उल-फितर जिसे हम मीठी ईद के नाम से जानते है। दूसरी ईद -उल-अज़हा (Eid al-Adha) है जिसे हम बकरीद क नाम से जानते है। असल भारत समेत ऐशिया के कुछ देशो जैसे पाक्सितान, बग्लादेश, अफगानिस्तान में ही इस ईद को बकरीद के नाम से जाना जाता है। दुनिया के बाकी हिस्सो में इस ईद को ईद-उल-जुहा ही कहा जाता है।
ईद उल अजहा का क्या मतलब है
ईद उल अजहा जिसे हम बकरीद भी कहते है। उसके मीनिंग को अगर समझने की कोशिश की जाये तो अजहा का मतलब होता है त्याग। इसे आप अग्रेजी का Sacrifice भी कह सकते है। ईद के दिन बकरे या किसी अन्य जानवर की कुर्बानी करके दुनिया भर के मुसलमान एक तरीके से प्रतीकात्मक तौर पर हजरत ईब्राहिम की कुबार्नी को याद करने की कोशिश करते है।
2022 में बकरीद किस दिन होगी
2022 में बकरीद 9 या 10 जुलाई को हो सकती है।
बकरीद के त्योहार को और क्या कहते है
बकरीद के त्योहारा को ईद-उल-अजहा भी कहते है
बकरीद की शुरूआत कैसे हुई
बकरीद की शुरूआत हजरत ईब्राहिम के जमाने में तब हुई जब उन्होने अल्लाह की राह में अपने

इशात जैदी एक लेखक है। इन्होने पत्रकारिता की पढाई की है। इशात जैदी पिछले कई सालों से पत्रकारिता कर रहे है। पत्रकारिता के अलावा इनकी साहित्य में भी गहरी रूचि है।