chaudhary charan singh biography in hindi (birth, education, activism, thought, politics, books, death) चौधरी चरण सिंह की सम्पूर्ण जीवनी (जन्म, शिक्षा, विचार, राजनीति, किताबे, मृत्यू)
कोई भी मुल्क तब तक तरक्की नही कर सकता जब तक कि उस मुल्क के गांवों में खुशहाली और प्रगति नही हो जाती।
महात्मा गांधी
ये वाक्य भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के है। महात्मा गांधी का मानना था कि देश की तरक्की का रास्ता देश के गांवों से होकर जाता है। इस देश के राजनैतिक इतिहास में ऐसे कई नेता गुजरे जिन्होने महात्मा गांधी की गांव को लेकर कही गई इन बातों को माना तो जरूर लेकिन कभी उन पर अमल नही किया और तरक्की के नाम पर गांव के गांव उजाड़ दिये। लेकिन आज हम आपको जिस नेता के बारे में बताने वाले है वो गांव की तरक्की को लेकर महात्मा गांधी से भी एक कदम आगे की सोच रखते थे। वो राजनेता जिन्होने ना केवल गांधी की ग्रामीण परिकल्पना को दोहराया बल्कि उस पर मुकम्मल तौर पर अमल भी किया। गांव के किसानों के वो मुुुुद्दे जिन पर आजाद भारत की पूंजीवादी सरकारे कभी ध्यान भी नही देती थी उन मुद्दों को ससंद तक पहुंचाया और बड़े बड़े राजनेताओं को किसानो के आत्मसम्मान के सामने घुटने टेकने पर मजूबर किया।
आज किसानो की आत्मविश्वास की जिस आग के सामने बड़ी बड़ी सरकारे हिलती हुई नजर आ रही है उस आग की पहली चिंगारी जिस किसान नेता ने चलाई थी उसका नाम है चौधरी चरण सिंह (Chaudhrary charan singh Story) । एक बेहद ही गरीब परिवार से निकलकर सत्ता के सबसे बड़े सिंहासन तक पहुंचने वाले चौधरी चरण सिंह ने आजाद भारत में किसानो की दिशा और दशा को काफी हद तक बदल दिया। अगर इस देश के किसानो को चौधरी चरण सिंह का साथ नही मिलता तो उनकी हालत कैसी होती। इसकी कल्पना भी नही की जा सकती। तो आज हम आपको किसानो के इसी मसीहा की जिन्दगी के बारे में विस्तार से बताने वाले है।
Chaudhary charan singh Story Early life | चौधरी चरण सिंह की शुरूआती जिन्दगी
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर 1902 में उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद में हापुड़ जिले के नूरपुर नाम के गांव में हुआ। ऐसा माना जाता है कि इनके परिवार का ताल्लुक 1857 की क्रांन्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजा नहर सिंह से था। चौधरी चरण के पिता का नाम मीर चौधरी था। ये एक बेहद गरीब परिवार में पैदा हुए थे। इनका परिवार नूरपुर गांव में फूस के एक छप्पड़ में रहा करता था। जब चौधरी चरण सिंह पैदा हुऐ थे उस वक्त भारत के गांव में रहने वाले गरीब मजदूर किसानों की हालत बहुत ज्यादा दयनीय थे। अग्रेज गांव में रहने वाले मजदूर किसानों से जानवरों की तरह काम करवाया करते थे।
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किसान दिन रात अपने खेतों पर मजदूरी करके फसल तैयार करता था लेकिन अग्रेजी हुकूमत अपनी दमनकारी नीतियों के चलते इनकी सारी फसल हड़प लिया करती थी। दिन रात खेतों पर काम करने के बाद भी किसानो के हिस्से इतना ही अनाज आया करता था जिससे वो अपने परिवार का पेट पाल सके। चौधरी चरण सिंह अपनी बालअवस्था में अग्रेजो की इस दमनकारियों नीतियों को देखकर बेचैन हो जाया करते थे। वो अक्सर अकेले में बैठकर ये विचार किया करते थे कि देश के गरीब किसानो को अग्रेजो की इन दमनकारी नीतियों से कैसे छुटकार दिलाया जाये।
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ये वो दौर था जब महात्मा गांधी के विचार काफी तेजी से देशवासियों को अपनी तरफ आर्कषित कर रहे थे। उस वक्त महात्मा गांधी एक उम्मीद के रूप में पूरे देश के लोगो के बीच फेमस हो रहे थे। चौधरी चरण सिंह को जब महात्मा गांधी और उनके विचारों के बारे में पता चला तो वो गांधी जी से काफी ज्यादा प्रभावित हुए। महात्मा गांधी से प्रभावित होकर वो अपने गांव के आस पास के लोगो के बीच गांधी की विचारधारा का प्रचार करने लगे। फिलहाल वक्त गुजरता गया और गुजरते वक्त के साथ ही चौधरी चरण सिंह को ये विश्वास होने लगा कि देश को अग्रेजो की गुलामी से आजाद कराया जा सकता है।
Chaudhry charan singh Story | चौधरी चरण सिंह की शिक्षा
चौधरी चरण सिंह बचपन से ही पढ़ाई में काफी ज्यादा होशियार थे। उन्हे देश विदेश के महान नेताओ की जीवनियां पढ़ना काफी अच्छा लगता था। वो कबीरदास के दोहों को काफी ज्यादा पसन्द करते थे और उन्होने अपने बचपन में कबीर दास जी के कई दोहे रट लिये थे जिन्हे वो अक्सर अपने गांव में लोगो के बीच बैठकर गुनगनाया करते थे। उन्होने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही पूरी की। मेट्रिक करने के बाद वो मेरठ के एक उच्च विध्यालय में चले गये। अपनी मेट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद चौधरी चरण सिहं 1923 में अपने ग्रेजुएशन के लिए आगरा यूनिवसिर्टी चले गये।

आगरा यूनिवर्सिटी ने इन्होने पहले विज्ञान से स्नातक किया फिर कला में पोस्ट ग्रेजुएशन की ड्रिग्री प्राप्त की। बाद में कानून की ड्रिग्री लेने के बाद ये गाजियाबाद की एक कोर्ट में वकालत की प्रेक्टिस करने लगे। अपने वकालत के दिनों में भी चौधरी चरण सिंह सिर्फ उन लोगो के लिए वकालत किया करते थे जिनके साथ हकीकत में नाइंसाफ हुआ है। अगर कोई गरीब इंसान उनके पास इंसाफ की गुहार लगाने आता था तो वो अदालत में ऐसे लोगो की पैरवी बिना अपनी फीस लिये भी कर लिया करते थे। एक वकील के तौर पर चौधरी चरण सिंह ने कई ऐसे लोगो को इंसाफ दिलवाया जो गरीबी के चलते नाइसांफी का दंश झेलने के लिए मजबूर थे।
जब चौधरी चरण स्वतंत्रता के आंदोलने में एक्टिव हुए
कई सालो तक वकालत करने के बाद चौधरी चरण सिंह को इस बात का अहसास हो गया था कि अगर देश में गरीबों और किसानों के साथ न्याय एक स्वदेशी सरकार ही कर सकती है। ये वो दौर था जब गांधी जी ने इस देश में स्वतंत्र आंदोलनो की शुरूआत कर दी थी। महात्मा गांधी की विचारधारा से प्रभावित होकर चौधरी चरण सिंह ने 1929 में स्वतत्रंता आंदोलनो में प्रवेश किया। अपने क्रांन्तिकारी आंदोलनों की शुरूआत उन्हो गाजियाबाद में की।

उन्होने गाजियाबाद में कॉग्रेस की एक युवा कमेठी का गठन किया। 1930 में महात्मा गांधी ने देशभर में सविनय अवज्ञा आंदोंलन की शुरूआत की तो चौधरी चरण ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए इस आदोलन को घर घर तक पहुंचाने का काम किया। जब महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आदोंलन से देशभर के लोगो को नमन कानून को तोड़ने का आव्हान किया तो चौधरी चरण सिंह ने भी गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिंडन नदी पर नमक कानून के खिलाफ मोर्चा सभांला। उन्हे इस आंदोलन में भाग लेने की वजह से जेल में भी जाना पड़ा। नमन कानून के खिलाफ हुए इस आंदोलन की वजह से उन्हे 6 महीने के लिए जेल जाना पड़ा। जेल से रिहा होने के बाद भी वो लगातार गांधी जी के आंदोलन से जुड़े रहे। अग्रेजी हुकूमत ने उन्हे 1940 में एक बार फिर सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने की वजह से जेल में डाल दिया। इस दौरान उन्हे 1 साल की जेल हुई। इसके बाद भी वो अग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपने विरोध के चलते जेल से आते जाते रहे।
Chaudhry charan singh polictical life | चौधरी चरण सिंह का राजनैतिक जीवन
कई सालो तक एक्टिविज्म करने के बाद चौधरी चरण सिंह ने अपनी राजनैतिक पारी की शुरूआत 1937 में की। चौधरी चरण सिंह 1937 में छपरौली जिला बागपत से विधानसभा का चुनाव जीतकर यूपी की विधानसभा में पहुंचे। विधानसभा में पहुंचते ही उन्होने किसानों और मजदूरों के लिए काम करना शुरू कर दिया। किसानों की हालत को सुधारने के लिए चौधरी चरण सिंह ने 31 मार्च 1938 में कृषि उत्पाद बाजार विधेयक पेश किया। ये विधेयक वो खास तौर पर किसानों के लिए ही लेकर आये थे। इस विधेयक को अन्य राज्यों की सरकार ने भी स्वीकार किया। सबसे पहले पंजाब की सरकार ने 1940 को इस विधेयक को अपने राज्य में लागू किया।
विधानसभा में पहुंचने के बाद से लगातार चौधरी चरण सियासत की सीढिया चढ़ते रहे। 1947 में जब देश अग्रेजो की हुकूमत से आजाद हो गया तो चौधरी चरण सिंह को 1951 में यूपी कैबिनेट में न्याय व सूचना मंत्री बनाया गया। आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चौधरी चरण यू तो काफी अच्छे दोस्ते थे लेकिन उन दोनो की कार्यप्रणाली में काफी अन्तर था। आजादी से पहले सामाजवाद की बात करने वाली नेहरू सरकार जब पूंजीवाद की तरफ बढ़ने लगी चौधरी चरण सिंह का काग्रेस पार्टी से मोहभंग होने लगा। इस मोहभंंग के चलते है चौधरी चरण सिंह और जवाहर लाल नेहरू के बीच में वैचाारिक मतभेद होना शुरू हो गये। उन्होने इस मतभेद के चलते 1967 में कॉग्रेस पार्टी को छोड़ दिया और राजनारायण और रोम मनोहर लोहिया के साथ एक नई पार्टी का गठन किया। अपनी इस नई पार्टी बनाकर वो 1967 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री भी बन गये। बाद में उन्होने मुख्यमंत्री से इस्तीफा दे दिया लेकिन 1970 आते आते वो दोबारा से यूपी के मुख्यमंत्री बन गये।
इसके बाद इन्दिरा गांधी का समय आया। वो इन्दिरा गांधी की नीतियो का भी लगातार विरोध करते रहे। 1975 में जब इन्दिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई तो देश के अन्य विरोधी पक्ष के नेताअेां की तरह चौधरी चरण सिंह को भी जेल में जाना पड़ा। बाद में इमरजेन्सी के बाद जब 1977 में दोबारा चुनाव हुए तो देश की तमाम विरोधी दलों ने मिलकर एक जनता पार्टी का गठन किया। चौधरी चरण सिंह भी अपनी पार्टी के साथ जनता दल में शामिल हो गये।
जनता पार्टी को चुनाव में बड़ी जीत हासिल हुई जिसके बाद मोरारजी देसाई को देश का प्रधानमंत्री बना दिया गया। जनता पार्टी की इस सरकार में चौधरी चरण सिंह गृहमंत्री बनाये गये। इस दौरान वो उप प्रधानमंत्री भी रहे। इन्ही सब मतभेदों के चलते उन्होने जनता पार्टी से किनारा करते हुए कॉग्रेस व अन्य कुछ पार्टियों के समर्थन से 28 जुलाई 1979 में प्रधानमंत्री का पदभार सभाला। प्रधानमंत्री बनने के बाद चौधरी चरण बतौर प्रधानमंत्री एक बार भी संसद नही जा सके। कुछ महीने के बाद ही इंन्दिरा गांधी की कॉग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। इस तरह वो सिर्फ 14 जनवरी 1980 तक ही देश के प्रधानमंत्री बने रहे सके।
चरण सिंह के द्वारा किये गए कार्य ( Chaudhary Charan Singh work)
चौधरी चरण सिंह मुख्य तौर पर किसानों के नेता थे। किसान आप भी उन्हे अपना मसीहा मानते है। उन्होने किसानो के लिए तमाम ऐसे कार्य किये जिनका लाभ किसानों को आज भी मिल रहा है। जमीदारी उन्मूलन विधेयक से लेकर उन्होने संंसद से तमाम ऐसे विधेयक पास करवाये जो किसानो के लिए काफी उपयोगी साबित रहे।
चौधरी चरण सिंह की किताबेंं
चौधरी चरण सिंह ने यू तो अपनी जिन्दगी में तमाम किताबे लिखी लेकिन उनकी प्रमुख किताबे कुछ इस प्रकार है।
- india’s economic policy – The gandhian blueprint
- economic nightmare of india- its cause and cure
- शिष्टाचार
चरण सिंह मृत्यु ( Chaudhary Charan Singh death)
सत्ता के उच्च मुकाम तक पहुंचने के बाद भी अपनी पूरी जिन्दगी को बेहद सादगी से जीने चौधरी चरण सिंह की मृत्यू 29 मई 1987 हुई। उनके जाने के बाद उनकी विरासत को उनके बेट अजीत सिंह ने सभाला। आज अजीत सिंह भी इस दुनिया में नही है फिलहाल इस वक्त अजीत सिंह के बेटे जंयत सिंह के ऊपर अपने दादा की विरासत को सभालने की जिम्मेदारी है।
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चौधरी चरण सिंह के विचार
• असली भारत गांवों में रहता है.
• अगर देश को उठाना है तो पुरुषार्थ करना होगा … हम सब को पुरुषार्थ करना होगा मैं भी अपने आपको उसमें शामिल करता हूँ … मेरे सहयोगी मिनिस्टरों को, सबको शामिल करता हूँ … हमको अनवरत् परिश्रम करना पड़ेगा … तब जाके देश की तरक्की होगी.
• राष्ट्र तभी संपन्न हो सकता है जब उसके ग्रामीण क्षेत्र का उन्नयन किया गया हो तथा ग्रामीण क्षेत्र की क्रय शक्ति अधिक हो.
• किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होगी तब तक देश की प्रगति संभव नहीं है.
• किसानों की दशा सुधरेगी तो देश सुधरेगा.
• किसानों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती तब तक औधोगिक उत्पादों की खपत भी संभव नहीं है.
• भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वो देश कभी, चाहे कोई भी लीडर आ जाये, चाहे कितना ही अच्छा प्रोग्राम चलाओ … वो देश तरक्की नहीं कर सकता.
• हरिजन लोग, आदिवासी लोग, भूमिहीन लोग, बेरोजगार लोग या जिनके पास कम रोजगार है और अपने देश के 50% फीसदी किसान जिनके पास केवल 1 हैक्टेयर से कम जमीन है … इन सबकी तरफ सरकार विशेष ध्यान होगा.
• सभी पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों, कमजोर वर्गों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जनजातियों को अपने अधिकतम विकास के लिये पूरी सुरक्षा एवं सहायता सुनिश्चित की जाएगी.
• किसान इस देश का मालिक है, परन्तु वह अपनी ताकत को भूल बैठा है.
• देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है.
चौधरी चरण सिंह भारत प्रधानमंत्री कब बने थे
चौधरी चरण सिंह भारत प्रधानमंत्री भारत के प्रधानमंत्री 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक बने थे
चौधरी चरण सिंह का जन्म कब हुआ था
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 में हुआ था
चौधरी चरण सिंह के बेटे का क्या नाम था
चौधरी चरण सिंह के बेटे का नाम चौधरी अजीत सिंह था
चौधरी चरण सिंह की मृत्यू कब हुई थी
चौधरी चरण सिंह की मृत्यू 29 मई 1987 को हुई
तो ये थी चौधरी चरण सिंह की कहानी (Chaudhrary charan singh Story), हमे पूरीे उम्मीद है कि आपको हमारी चौधरी चरण सिंह की ये कहानी पसन्द आई होगी।
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