choudhary ajeet singh story- वो किसान नेता जो यूपी का मुख्‍यमंत्री बनने बनते रह गया

choudhary ajeet singh story

कोरोना वायरस पूरी दुनिया में किसी नरभक्षी दानव की तरह  कहर मचा रहा है। अगर भारत की बात करे तो पिछले एक साल में कोरोना ने 2.5 लाख लोगो की जान ली।  आज पूरी दुनिया इस जहरीले वायरस से जूझ रही है। आप सोच रहे होगे कि हम चौधरी अजीत सिंह की जगह कोरोना वाइरस का जिक्र क्‍यों कर रहे है। दरअसल ये कोरोना वाइरस ही है जिसने किसानों के आज के दौर के सबसे बडे नेतो को मौत की नींद सुला दिया। कोरोना वाइरस के चलते चौधरी अजीत सिंह का 6 मई सुबह 8.20 निधन हो गया। वो मैक्‍स हॉस्पिटल में भर्ती थे।

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इससे पहले चौधरी अजीत सिंह (choudhary ajeet singh story) के बारे में विस्‍तार से चर्चा करे। उनके परिवार के बारे में जान  लेते है। अजीत सिंह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे थे। इन्‍हे छोटे चौधरी के रूप में भी जाना जाता था। चरण सिंह के बाद अजीत सिंह को ही उत्‍तर भारत में किसानों का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। अब चलिये हम आपको विस्‍तार से चौधरी चरण सिंह की कहानी सुनाते है।

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एकदम शुरूआत से शुरू करते है। चौधरी अजीत सिंह का जन्‍म 12 फरवरी 1939 को मेरठ एक किसान चौधरी चरण सिंह के यहां हुआ। चौधरी चरण सिंह का भी अपना एक भव्‍य इतिहास है लेकिन वो फिर कभी। आज बात सिर्फ अजीत सिंह की। अजीत सिंह की माता का नाम गायत्री देवी था।

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उनके अपनी स्‍कूलिंग मेरठ के एक स्‍कूल से शुरू की। मेरठ में अपन शुरूआती पढाई पूरी करने के बाद वो उच्‍च्‍ शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए आईआईटी खडगपुर चले गये। यहां से उन्‍होने कम्‍प्‍यूटर इंजीनियरिग की डिग्री प्राप्‍त की।  आगे की पढाई करने के लिए चरण सिंह ने उन्‍होने अमेरिका भेज दिया।

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आईबीएम में नौकरी पाने वाले अजीत सिंह पहले भारतीयों में से एक थे। लंबे समय तक अजीत सिंह अमरीका में रहे। 1980 में जब उनके पिता चौधरी चरण सिंह (चरण सिंह 1979-1980 तक 6 महीने भारत के प्रधानमंत्री रहे) की तबीयत बिगड़ने लगे तो वो उनका हाथ बटाने के लिए भारत लौट आए।

1980 में राजनैतिक जीवन का आगाज

1980 के बाद चौधरी अजीत सिंह भारत लौटे। यही से शुरू हुआ अजीत सिंह के छोटे चौधरी बनने का सफर। अब अजीत सिंह सक्रिय राजनीति में कदम रख चुके थे। किसान सभा हो या राजनैतिक रैली हर जगह अजीत सिंह चौधरी चरण के साथ नजर आते इसके साथ – साथ पार्टी की सभी कार्यकारिणी बैठकों में हिस्सा लेते चौधरी चरण सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते  ।

1986 आते आते चौधरी चरण सिंह का स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया पार्टी के नेताओ ने निर्णय लिया चौधरी अजीत सिंह को राज्य सभा के रास्ते उच्च सदन में भेजा जाए यही से शुरू हुआ चौधरी अजीत सिंह ( छोटे चौधरी ) का राजनैतिक सफर। मई1987 में लंबी बीमारी के चलते पिता चौधरी चरण का निधन हो गया।

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चरणसिंह की बनाई पार्टी लोकदल में कब्जे की लड़ाई शुरू हुई मामला चुनाव आयोग तक पहुंच गया चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया अजीत सिंह के विरूद्ध। लेकिन उसके बाद भी अजीत सिंह ने हार नहीं मानी और राजनीति में बने रहे। अब अजीत सिंह को खुद को साबित करना था कि वो ही है भारत की राजनीति के छोटे चौधरी। 1989 में अजीत सिंह बागपत से लोकसभा का चुनाव लडे ओर भारी मतो से जीत कर लोकसभा पहुंचे।

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1989 में राजीव गांधी की कॉग्रेस ने बहुमत खो दिया ओर देश जनता ने खंडित जनादेश दिया। कांग्रेस से लड़ाई लड़ने के लिए तीसरा मोर्चा बना जिसके संसद दल के नेता चुने गए वीपी  भारत के प्रधानमत्री। वीपी सिंह को प्रधानमत्री अजीत सिंह ने  अहम भूमिका निभाई। जिसके चलते अजीत सिंह वीपी सिंह की सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया। उद्योग मंत्री रहते हुए अजीत सिंह कई किसान हितैषी कदम उठाए जिसमें सबसे अहम थे कई गन्ना  मिलों की स्थापना करना।

किसान कामगार पार्टी बनाई

लेकिन आपसी कलह के चलते वीपी सिंह की सरकार ज्यादा दिन नहीं चली ( ये कहानी किसी ओर दिन अब वापिस लौटते है अजीत सिंह पर) उसके बाद अजीत सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिए और 1991 के चुनाव में एक बार फिर से लोकसभा पहुंचे। 1995-96  में पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव की सरकार में खाद्य व रसद मंत्री बने। 1996 के लोकसभा चुनाव में फिर से बागपत से कोंग्रेस की टिकट पर चुनाव लडा ओर लगातार तीसरी बार लोकसभा पहुंचे।

1996में कांग्रेसी नेताओ से नाराजगी के चलते लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया ओर कोंग्रेस पार्टी का दामन भी छोड़ दिया ।  उन्‍होने अपनी अलग पार्टी बना ली जिसका नाम रखा किसान कामगार पार्टी। फिर से लोकसभा उपचुनाव  में जीत दर्ज की ओर सदन में पहुंचे। 1998 के आम लोकसभा चुनाव में पहली बार बागपत की सीट से अजीत सिंह को भाजपा के सोमपाल शास्त्री ने करीबी अंतर से हराया।

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राष्‍ट्रीय लोकदल की नींव रखी

1999 अजीत सिंह राष्ट्रीय लोकदल की नींव रखी। 2001 में  आरएलडी ने पहली बार भाजपा के साथ मिलकर उतर प्रदेश में सरकार बनाई। ओर अजीत सिंह केंद्र में कृषि मंत्री बने। यही वो दौर था जब अजीत सिंह उत्तर भारत की राजनीति में बड़े किसान नेता के रूप में स्थापित हुए। उसके बाद 2002 के चुनाव में बसपा,भाजपा गठबंधन में शामिल हुए। 2003 में अपना समर्थन वापिस ले लिए जिसके चलते मायावती की सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई।

ये वो समय था जब उतर प्रदेश में अजीत सिंह को किंग मेक्कर के रूप में जाना जाता था। जहां जाते थे बाजी पलट जाती थी ।2003 में सपा के साथ गठबंधन में रहे मगर 2007 में किसान विरोधी नीतियों के चलते मुलायम सिंह यादव का दामन छोड़ दिया।  2009 में राष्ट्रीय जनता दल ने एनडीए के घटक दल के रूप में चुनाव लडा ओर पांच सीटों पर जीत दर्ज की। अजीत सिंह एक बार फिर से बागपत सीट से लोकसभा पहुंचे।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में  केंद्र में मंत्री भी रहे। लेकिन अजीत सिंह को झटका जब 2014 के चुनाव में मोदी लहर के चलते भाजपा के सत्यपाल मलिक ने इस उनके ही गढ़ बागपत में उन्हें पठकनी दी।  2019 के लोकसभा चुनाव में अजीत सिंह बागपत की सीट छोड़ कर मुज़फ़्फ़र नगर की सीट से  चुनाव लड़ने चलें गए मगर इस बार भाजपा के कदावर किसान नेता संजीव बालियान उन्हें मात दी। हालिया में हुए जिला पंचायत चुनाव में जरूर चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल ने अच्छा प्रदर्शन किया किसान आंदोलन राष्ट्रीय लोकदल की ओक्सीजन के रूप में देखा जा रहा था मगर ये देखने के लए चौधरी अजीत सिंह इस दुनिया में नहीं रहे।

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चौधरी अजीत सिंह को क्यों याद किया जाना चाहिए?

अजीत सिंह अपने पूरे कार्यकाल में किसानों के लिए काम करते रहे । 7 बार सांसद ओर पांच बार केंद्रीय मंत्री रहे मगर उनके उपर एक भी भ्रटाचार का मामला दर्ज नहीं हुआ को भारत की राजनीति में अपवाद है।

 ये लेख हमारी तरफ से चौधरी अजीत सिंह को श्रद्धांजलि है।

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