Kumar vishwas success story, आज हम आपको कुमार विश्वास की कहानी सुनाने वाले है।
देश भर में इस वक्त आक्सीजन और दवाइयों की भारी किल्लत है। कोई इन्सान इलाज के अभाव में अपनी जान ना गवाये। इसी मकसद से कुछ लोग इस वक्त ऐसे माहौल में जब हर कोई अपनी जान बचाने की कोशिश में लगा हुआ है। कुछ लोग ऐसे भी है जो महामारी के इस तौर में दूसरो की जिन्दगी को बचाने के लिए दिन रात एक किये हुए है। इन्सानियत को बचाने की जद्दोंजहद में लगे इन्ही नामों में से एक नाम कुमार विश्वास का भी है।
अपनी कविताओं की वजह से देश भर में मशहूर हो चुके कुमार विश्वास इस वक्त कोरोना वाइरस से पीडित लोगो को ये ‘विश्वास’ दिलाने की कोशिश में लगे हुए है कि उन्हे इस वाइरस से परेशान नही होना है। उनकी जिन्दगी इस वाइरस की वजह से खत्म होने वाली नही है।
तुम्हे जीने में आसानी बहुत है
तुम्हारे खून में पानी बहुत है
जहर सूली ने गाली गोलियो ने
हमारी जात पहचानी बहुत है
इरादा कर लिया गर खुदकुशी
तो खुद की आंख का पानी बहुत है।
कुमार विश्वास अब तक देश के लगभग 350 गांवों तक अपनी मदद पहुचा चुके है। उन्होने अपनी पूरी टीम को इसी काम में लगा रखा है। वो अपनी टीम के माध्यम से गांव गांव जाकर लोगो को कोरोना की एक किट पहुंचा रहे है। इस किट में कुछ दवाइयों, ऑक्सीमीटर, एक दो मास्क और एक सैनीटाइजर है। वो अब तक लगभग 30000 लोगो को ये किट पहुंचा चुके है। इसके अलावा उन्होने कई गांवों में अपने कोरोना सेंटर खुलवा दिये है। इन सेंटर्स में कोरोना के मरीजों को आक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध कराये जा रहे है। इस नेक काम की बदौलत वो अबतक लगभग हजारों लोगो की जान बचा चुके है।
अब आइये कुमार विश्वास के बार में विस्तार से चर्चा करते है।
कुमार विश्वास का जन्म 10 फरवरी 1970 को गाजियाबाद के एक छोटे से गांव बिलखुआ में हुआ। उनके पिता का नाम चन्द्रमा पाल शर्मा और मा का नाम रमा शर्मा है। कुमार विश्वास के 4 भाई और 1 बहन है।
कुमार विश्वास कवि कैसे बने। कहानी बडी दिलचस्ब है। उनके पिता बिलखुआ के एक ड्रिग्री कॉलेज में हिन्दी के अध्यापक थे। वो बडे अनुशासित और अडियल दिमाग के एक कट्टर बह्रामण थे। घर का माहौल ऐसा था कि हर काम का टाइम फिक्स रहता है। उन पर और उनके भाइयों पर पिता का इतना खौफ था कि उनके आते ही सब लोग किताबे लेकर बैठ जाते थे। इन लोगो को जरा जरा सी बात पर पिता जी की डाट का सामना करना पडता था। कभी कभी तो पिता जी मार भी लगा दिया करते थे।
कुमार विश्वास बचपन से ही काफी प्रतिभाशाली थे। उनकी प्रतिभा को देखकर उनके पिता ने ये फैसला कर लिया था कि वो अपने सबसे छोटे बच्चे को इंजीनियर बनायेगे। कुमार विश्वास के दिमाग में उस वक्त क्या चल रहा था।

इसके बारे में बात करते हुए वो बताते है कि उन्हे बचपन से ही किस्से, कहानियें और कवितायें लिखने में मजा आता था। वो कभी कभी अपने परिवार से छुपकर फिल्म देखने भी जाया करते थे। वो किस्सों और कविताओं की किताबे पढते है, ये बात अपने पिता जी छिपाने के लिए वो अपने कोर्स की किताबों के बीच में कविताओं और कहानियों की किताबो को छिपाकर पढ़ा करते थे। इन किताबे में उनकी गहरी रूचि थी।
कुमार विश्वास ने जब अपने 12 तक की पढाई पूरी कर ली। तो अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए उन्होने इलाहाबाद के एमएनआईटी इन्जीनियरिंग कॉलेज में एडमीशन ले लिया। एमएनआईटी में आने के कुछ समय बाद ही उन्हे समझ में आ गया कि वो मशीनों की पढाई करने के लिए नही बने है। अपने दूसरे सेमेस्टर में ही उन्होने फैसला कर लिया कि वो अब वो ही करेगे जो उनका मन उनसे कह रहा है। ये सोचकर उन्होने अपने दूसरे सेमेस्टर में ही इन्जीनियरिंग की पढाई छोड दी।
यू शुरू हुआ कवि बनने का सफर
कुमार विश्वास ने जब अपने पिता जी को बताया कि उन्होने इंजीनियरिंग की पढाई छोड दी है और वो साहित्य पढना चाहते है। उनके पिता के पॉव से जैसे जमीन निकल गई। उनका मानना था कि साहित्यकार या कवि सामाज के सबसे दमित और दरिद्य लोगो में से होते है। कवियों का कोई भविष्य नही होता है। उन्होने पहले तो कुमार विश्वास को बहुत समझाया लेकिन जब वो नही माने तो उन्होने साफ कह दिया कि जो करना है करो। लेकिन उनसे कोई उम्मीद मत रखना।
इंजीनियरिंग कॉलेजे को छोडने के बाद कुमार विश्वास के सामने अपने लिए पैसों का इन्तेजाम करना था। उन्हे बीए में एडमीशन लेना था और उनके पिता ने उन्हे पैसे देने से मना कर दिया था। अपने लिए पैसो का इन्तेजाम करने के लिए कुमार विश्वास ने एक स्थानिय न्यूजपेपर में कहानिया लिखना शुरू कर दिया। उन्हे कुछ पैसे मिलने लगे। इन पैसो से उन्होने अपने लिए फीस का इन्तेजाम कर लिया। वो प्राइवेट छात्र के तौर साहित्य की पढाई करने लगे।
उन्होने अपने बीए के पहले साल की परीक्षा 70 फीसदी अंकों के साथ पास की। अपने बीए की पढाई के साथ ही उन्होने कवि सम्मेलनों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। अपने शुरूआती कवि सम्मेलनों में ही उन्होने उस वक्त के फेमस कवियों और शायरों को इम्प्रेस कर दिया। धीरे धीरे उनका नाम कवि सम्मेलनों की दुनिया में धूम मचाने लगा।
कुमार विश्वास के बहुत विरोधी थे। जब वो कवि सम्मेलनों की दुनिया में लगातार फेमस हो रहे थे। तो उन्होने सोच लिया कि अब उन्हे अपना नया नाम रखना है। जब उन्होने इस बात को लेकर अपनी बहन से बात की तो उनकी बहन ने कहा कि वो अपना नाम विश्वास कुमार शर्मा की जगह कुमार विश्वास रख ले।
इस तरह अपनी बहन के कहने पर उन्होने अपना नाम कुमार विश्वास लिखवाना शुरू कर दिया। कुमार विश्वास ने बीए की परीक्षा करने के बाद एमए में एडमीशन लिया। एमए उन्होने गोल्ड मेडल के साथ पास किया। अपनी पढाई के दौरान भी वो लगातार कवि सम्मेलनों में जाते रहे।
टीचर के तौर पर की अपने कैरियर की शुरूआत
कुमार विश्वास ने अपने कैरियर की शुरूआत एक अध्यापक के तौर पर की। उन्होने 1994 में राजस्थान के एक कॉलेज में पढाना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्होने इसी कॉलेज में पढाने वाली एक लडकी से शादी कर ली। उन्होने अपनी शादी भी अपनी पिता की मर्जी के खिलाफ की। उनकी पिता जी उनकी शादी के खिलाफ थे क्योकि लडकी उनकी जाति की नही थी। इस वजह से कुमार विश्वास को कुछ साल अपनी पत्नी के साथ अपने परिवार से अलग रहना पडा। बाद में उनके परिवार ने उन्हे स्वीकार कर लिया। उनकी पत्नी का नाम मंजू है। कुमार विश्वास अपनी पत्नी और अपनी दो लडकियाे के साथ गाजियाबाद में रहते है।
अन्ना आंदोलन से राजनीति मे की इन्ट्री
2010 में जब पूरा देश महगाई और भ्रष्टाचार की वजह से परेशान था। भ्रष्टाचार के नये नये मामले सामने आ रहे थे। ऐसे माहौल में जब अन्ना हजारे ने जनलोकपाल बिल को लेकर आदोंलन छेड दिया। तो कुमार विश्वास भी इस आदोंलन में शामिल हो गये। दिल्ली की रामलीला मैदान में हुए अन्ना आदोंलन में वो आदोंलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे। इस आदोंलन ने कुमार विश्वास देश के हर हिस्से में पहुचा दिया।

अन्ना आदोंलन के बाद जब आम आदमी पार्टी बनी। तो वो इस पार्टी का हिस्सा बन गये। बाद में उन्होने इस पार्टी के टिकट पर अमेठी से चुनाव भी लडा। ये चुनाव उन्होने राहुल गांधी के खिलाफ लडा था। इन चुनावो में उनकी बुरी तरह हार हुई थी।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लिए प्रचार किया
एक जमाना था जब आम आदमी पार्टी को लेकर लोगो में संशय पैदा हो रहा है। दिल्ली की जनता आम आदमी पार्टी को उसके पहले ही चुनावों जबरदस्त समर्थन किया था। दिल्ली वालों को केजरीवाल में एक नायक दिखाई दे रहा था। बात 2013 की है जब दिल्ली में कॉग्रेस पार्टी के समर्थन से आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी। लेकिन मात्र 45 दिन बाद अरविन्द केजरीवाल दिल्ली की गद्दी छोडकर देश भर में चुनाव लडने के लिए चले गये थे।
2015 में दिल्ली में चुनाव हाेेने थे। दिल्ली के लोग केजरीवाल से काफी नाराज थे। भारतीय जनता पार्टी ने भी किरण बेदी को सीएम का उम्मीदवार बनाकर अपनी चाल चल दी थी। ऐसे में वो कुमार विश्वास ही थे जिन्होने अपनी पार्टी को इस गहरे संकट से निकाला था। कुमार विश्वास 2014 में हुए दिल्ली के चुनावों में हर सीट पर जाकर पार्टी का प्रचार किया था। ये कुमार विश्वास की ही मेहनत थी जिसने दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटों पर जीत दिलाई थी।
कुमार विश्वास आप से अलग कैसे हुए
जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई। तो इस पार्टी की अन्दरूनी कलह खुलकर सामने आ गई। योगेन्द्र यादव, प्रशान्त भूषण जैसे कई बडे नेता अरविन्द केजरीवाल के ऊपर कई आरोप लगाकर पार्टी से अलग हो गये। जब कई बडे नेता आम आदमी पार्टी को छोडकर जा रहे थे। कुमार विश्वास पार्टी के साथ बने हुए थे। जब बात पार्टी के टिकट पर राज्य सभा जाने की आई तो कुमार विश्वास को ये विश्वास था कि पार्टी जिन तीन लोगो को राज्यसभा भेजेगी उनमें से एक नाम उनका उनका भी होगा।
लेकिन ऐसा हुआ नही। आम आदमी पार्टी ने पार्टी के बाहर के दो लोगो को सांसद बनाकर राज्यसभा में भेज दिया। कुमार विश्वास को ये बात काफी बुरी लगी। इसके बाद उन्होने आम आदमी पार्टी से किनारा कर लिया।
कुमार विश्वास अब क्या कर रहे है
इस वक्त कुमार विश्वास वो ही कर रहे है जो वो राजनीति में आने से पहले किया करते थे। उन्होने अभी हाल ही में एक किताब भी लिखा है। उनकी किताब का नाम फिर मेरी याद है। इसके अलावा वो उन्होने आज तक पर केवी सम्मेलन नाम से एक शो भी किया है। कुमार विश्वास यू ट्यूब पर भी काफी ज्यादा एक्टिव है। यू-टयूब पर उनके 26 लाख से भी ज्यादा सब्सक्राइबर है। वो फेसबुक पर भी काफी ज्यादा एक्टिव रहते है।
कुमार विश्वास के कुछ फेमस गीत
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है

इशात जैदी एक लेखक है। इन्होने पत्रकारिता की पढाई की है। इशात जैदी पिछले कई सालों से पत्रकारिता कर रहे है। पत्रकारिता के अलावा इनकी साहित्य में भी गहरी रूचि है।