munawwar rana story | मोहब्‍बत की बात करने वाले मुनव्‍वर मुसलमानों के शायर क्‍यो बन गये

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munawwar rana story, आज हम आपको मुनव्‍वर राना की जिन्‍दगी के बारे में बताने वाले है

ये अपने आपको तक्‍सीम कर लेता है सूबों मे
खराबी बस यही हर मुल्‍क के नक्‍शे में होती है

एकता, अखडता और आपसी भाईचारे की भावना को अपनी शायरी के जरिये लव्जों में बया करने वाला शायर आज क्‍यो कट्टर मुसलमानों की भाषा बोलता हुआ नजर आ रहे है। जिसकी शायरी के जरिये एक जनरेशन ने अपनी मां और देश से मोहब्‍ब्‍त करना सीखा है। वो क्‍यो आज ऐसे बयान दे रहा है जिसकी वजह से दो धर्मो के बीच नफरत पैदा हो सकती है। आजकल गलत बातों की वजह से चर्चा में रहने वाले मुनव्‍वर राना की जिन्‍दगी की कहानी क्‍या है। आईये उनकी जिन्‍दगी पर कुछ नजर डालते है।
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Munawwar Rana Biography in Hindi | मुनव्‍वर राना की जिन्‍दगी की कहानी

 अपनी शायरी की वजह से दुनियाभर में फेमस हो चुके मुनव्‍वर राना का जन्‍म 26 नवम्‍बर 1952 में रायबरेली मे हुआ था। उनकी मां का नाम आयशा खातून है। देश के बटवारे के बाद उनके पिता के परिवार के ज्‍यादातर लोग पाकिस्‍तान चले गये थे। मुनव्‍वर राना पैदा भले ही रायबरेली में हुये हो लेकिन उनके बचपन कोलकाता में बीता है। दरअसल मुनव्‍वर राना के पिता अपने परिवार को लेकर कोलकाता चले गये थे। मुनव्‍वर राना के पिता कोलकाता में ट्रक चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण किया करते थे। परिवार बहुत ज्‍यादा गरीब था इसलिए मुनव्‍वर राना की प्रारम्भिक शिक्षा भी ठीक से नही हो पाई थी।

मुनव्‍वर राना अपनी युवाअवस्‍था के शुरूआती दिनों में कम्‍यूनिस्‍ट विचारधारा को फालो करने थे। वो नक्‍सलवादियों से काफी ज्‍यादा मिलने लगे थे। अपने बेटे की इसी बात से नाराज होकर उनके पिता ने उनसे नाराज रहने लगे थे। जब मुनव्‍वर राना के बगावती सुर मुखर होने लगे तो उनके पिता ने उन्‍हे अपने घर के भी निकाल दिया था। घर से निकलने के बाद मुनव्‍वर के दो साल काफी तकलीफे से भरे रहे। बाद में जब उन्‍होने अपनी विचारधारा बदली तो उनके पिता ने उन्‍हे अपने घर में पनाह दी।

मुनव्‍वर को बचपन से ही शायरी पढने लिखने का काफी शौक था। उन्‍होने अपने बचपन में ही मिर्जा गालि‍ब से लेकर मीर अनीस, जौक जैसे शायरों को काफी अच्‍छे से पढ लिया था।

मुनव्‍वर राना को बडा शायर बनाने में उनके उस्‍ताद वाली आसी का बहुत बडा हाथ है। वली आसी ने ही मुनव्‍वर को मुनव्‍वर राना का नाम दिया। मुनव्‍वर राना के ऊपर कैफी आजमी का बहुत ज्‍यादा प्रभाव दिखाई देता है।

munawwar rana story
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यू तो मुनव्‍वर राना ने कई विषयों के ऊपर अपनी कलम चलाई है। लेकिन उन्‍होने मा के ऊपर जो कुछ भी लिखा। उसने उन्‍हे दुनिया भर में फेमस कर दिया। वो अपनी मां से बहुत प्‍यार करते थे। ये बात उनकी शायरी में भी साफ तौर पर झलकती है।

जब भी कश्‍ती मेरे सैलाब में आ जाती है
मा दुआ देती हुई ख्‍वाब मे आ जाती है।

मुनव्‍वर राना के सुर कब बदले

बात 2015 की है। दादरी में कुछ कट्टरवादी मुस्लिमों ने अखलाक नाम के एक इक इंसान पर बीफ खाने का आरोप लगाकर बेरहमी से पीट पीट कर मार डाला। इस घटना के बाद असहिष्‍णुता को लेकर पूरे देश में बहस होने लगी। इस घटना का मुनव्‍वर राना के ऊपर भी बहुत गहरा प्रभाव पडा। 2013 में उन्‍हे भारत सरकार ने साहित्‍य एकाडमी पुरूस्‍कार से नवाजा था। इस घटना के बाद उन्‍होने एक न्‍यूजचैनल में लाइव डिबेट के दौरान ये पुरूस्‍कार सरकार को वापस देते हुए कहा कि जब तक देश के हालात ठीक नही होगे। वो सरकार से कोई पुरूस्‍कार नही लेगे।
इस घटना के बाद से ही मुनव्वर राना के सुर बदलने लगे। उन पर आरोप लगने लगा कि वो कट्टर इस्‍लाम को बढावा दे रहे है। अखलाक के केस में मुनव्‍वर राना सिर्फ कट्टर हिदुत्‍व की आलोचना कर रहे थे। लेकिन इसके बाद जो मुनव्‍वर राना ने किया वो उनके सैक्‍यूलर फैन्‍स के लिए काफी चौकाने वाला है।
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फ्रास में एक काटूनिस्‍ट को मुस्लिम कट्टरवादियों ने इस वजह से मार दिया क्‍योकि उसने पैगम्‍बर साहब का र्काटून बनाया था। दुनिया भर में इस बात को लेकर बहस हुई। जब मुनव्‍वर राना से इस घटना को उनकी राय पूछी गई तो उन्‍होने कहा कि अगर मै भी होता तो मै भी ऐसे कॉटूनिस्‍ट का सर काट देता। इस्‍लामी कट्टरवादी भावना से भरे हुए इस बयान ने मुनव्‍वर राना को सीधे तौर पर इस्‍लामी कट्टरवादियों की जमात में लाकर खडा कर दिया।

अभी हाल ही में जब तालीबान ने अफगानिस्‍तान को अपने कट्रोल में कर लिया। तो मुनव्‍वर राना ने इसपर अपनी टिप्‍पणी देते हुए कहा कि अफगानियों ने अपने आपको आजाद किया है। वो खुलकर तालीबानियों की हिमायत करते हुए नजर आये। मुनव्‍वर राना के इस बयान की भी जमकर आलोचना हुई।

मुनव्वर राना की रचनाएँ

  • माँ
  • ग़ज़ल गाँव
  • पीपल छाँव
  • बदन सराय
  • नीम के फूल
  • सब उसके लिए
  • घर अकेला हो गया
  • कहो ज़िल्ले इलाही से
  • बग़ैर नक़्शे का मकान
  • फिर कबीर
  • नए मौसम के फूल

पुरस्कार एवं सम्मान

  • 1993 – रईस अमरोहवी अवार्ड (रायबरेली)
  • 1995 – दिलकुश अवार्ड
  • 1997 – सलीम जाफरी अवार्ड
  • 2001 – मौलाना अब्दुर रज्जाक़ मलीहाबादी अवार्ड (वेस्ट बंगाल उर्दू अकादमी )
  • 2004 – सरस्वती समाज अवार्ड, अदब अवार्ड
  • 2005 – डॉ॰ जाकिर हुसैन अवार्ड (नई दिल्ली), ग़ालिब अवार्ड (उदयपुर), शहूद आलम आफकुई – अवार्ड (कोलकाता), मीर तक़ी मीर अवार्ड
  • 2006 – अमीर खुसरो अवार्ड (इटावा)
  • 2012- ऋतुराज सम्मान पुरस्कार
  • 2014 – साहित्य अकादमी पुरस्कार (सरकार से बेरूखी के कारण जिसे लौटा चुके हैं.)
  • भारती परिषद पुरस्कार, अलाहाबाद
  • बज्मे सुखन पुरस्कार, भुसावल
  • मौलाना अबुल हसन नदवी अवार्ड
  • उस्ताद बिस्मिल्लाह खान अवार्ड
  • कबीर अवार्ड

नोट – इनकी रचनाओं और पुरस्कार की जानकारी विकिपीडिया से ली गयी हैं.

मुनव्वर राना की गजल

आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए

आप दरिया हैं तो फिर इस वक़्त हम ख़तरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए

ऐरे-ग़ैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आप को औरत नहीं अख़बार होना चाहिए

ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए

अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए

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