Prashant kishor story | प्रशान्‍त किशोर की कहानी

जब से पश्चिम बंगाल के इलेक्‍शन रिजल्‍ट आये है। तब से प्रंशान्‍त किशोर (prashant kishor story) की चर्चा काफी ज्‍यादा हो रही है। प्रशान्‍त इन चुनावों के ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के चुनावी कैंपेन को लीड कर रहे थे। वो चुनावी रणनीतिकार के रूप में ममता बनर्जी की पार्टी के साथ काम कर रहे थे। इन चुनावों के नतीजे आ गये है। ममता बनर्जी की पार्टी को प्रचंड बहुमत के साथ जीत मिली है। टीएमसी ने बंगाल की 292 सीटों में 213 पर जीत हासिल कर ली है। ये टीएमसी की बंगाल में एक बड़ी जीत है।

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बीेजेपी को दिया था चैलेन्‍ज

टीएमसी की जीत पर प्रशान्‍त किशोर (prashant kishor story) की इतनी चर्चा क्‍यो हो रही है। दरअसल इसकी वजह ये है कि जब मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक, देश भर में ये चर्चा हो रही थी कि बंगाल में भारतीय जनता पार्टी टीएमसी को कड़ी टक्‍कर देने वाली है। इस बार ममता बनर्जी की सीएम की कुर्सी खतरे में है। तमाम राजनीतिक विशेषज्ञ बंगाल में बीजेपी की जीत की भविष्‍यवाणी कर रहे थे।

ऐसे माहौल में प्रंशान्‍त किशोर इन सभी लोगो को चैलेन्‍ज करते हुए कह रहे थे कि  बीजेपी बंगाल में डबल डिजिट को क्रास नही कर रही है। उन्‍होने कहा था कि अगर बंगाल में बीजेपी डबल डिजिट को क्रास करती है तो वो अपने काम से सन्‍यास ले लेगे। प्रशान्‍त किशोर ये बात दिसम्‍बर 2020 में कह रहे थे जब बंगाल में बीजेपी लगातार अपना विस्‍तार कर रही थी।

अब जब इन चुनावों के रिजल्‍ट आ गये है और बीजेपी 100 से काफी कम सीटों पर रूक गई है। तो प्रशान्‍त किशोर ने जो कहा था वो सच साबित हो गया है। प्रशान्‍त किशोर इन चुनावों में टीएमसी के एक ऐसे सारथी बनकर सामने आये जिन्‍होने अपनी सूझबूझ और सही आकलन से बीजेपी की हर रणनीति को ध्‍वस्‍त कर दिया।

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ऐसा पहली बार नही है जब प्रशान्‍त किशोर ने किसी पार्टी के लिए काम करते हुए उस पार्टी को जीत की दहलीज तक पहुंचाया हो। प्रशान्‍त किशोर ये कारनामा पहले भी कई बार कर चुके है। उन्‍होने अब तक जिस भी पार्टी के लिए काम किया है। उनमे से ज्‍यादातर पार्टियों को जीत मिली है।

प्रशान्‍त किशोर बिहार के बक्‍सर जिले से आते है। उनका जन्‍म 1977 में हुआ था। प्रशान्‍त के पिता का श्री कान्‍त पांडे है। वो बिहार सरकार में डाक्‍टर है। प्रशान्‍त की शादी हो चुकी है। उनकी पत्‍नी का नाम जान्हवी दास है। जान्‍हवी खुद एक डाक्‍टर है। वो असम की है। उनका एक बेटा भी है। प्रशान्‍त अपने परिवार को मीडिया की लाइमलाइट से दूर रखते है।

अगर प्रशान्‍त किशोर की माने तो वो बचपन में बेहद ही औसत दर्जे के छात्र हुआ करते थे। उन्‍होने अपने स्‍कूलिंग की शुरूआत के एक सरकारी स्‍कूल से की थी। 12 तक की पढाई बिहार में करने के बाद वो दिल्‍ली के हिन्‍दू कॉलेज में अपना ग्रेजूएशन करने के लिए आ गये। इस दौरान वो बीमार पर गये और अपनी पढाई अधूरी छोडकर वापस बिहार आ गये। बाद में किसी तरह उन्‍होने अपना  ग्रेजूएशन पूरा किया। कुछ साल और खाली बैठेने के बाद उन्‍होने अपना पोस्‍ट ग्रेजूएशन भी कर लिया।

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बिहार सरकार के लिए कर चुके है काम

प्रशान्‍त किशोर को नौकरी की तलाश थी। उस वक्‍त बिहार में रावड़ी देवी की सरकार थी। पल्‍स पोलियो अभियान देश भर काफी तेजी से फैल रहा था। इस अभियान के तहत बिहार सरकार को भी ऐसे लोगो की जरूरत थी। जो इस अभियान को लेकर लोगो में जागरूकता फैला सके। प्रशान्‍त किशोर को जब इस बारे में पता चला तो उन्‍होने भी एप्‍लाई कर दिया। इस तरह वो पब्लिक हेल्‍श से जुड गये।

प्रशान्‍त ने पब्लिक हेल्‍थ के क्षेत्र में काफी अच्‍छा काम किया। जिसका इनाम उन्‍हे ये मिला कि यूएन ने उन्‍हे अपने यहा नौकरी पर बुला लिया। प्रशान्‍त किशोर सयुक्‍त राज्‍य अमेरिका चले गये। वहां से कई देशो में काम करते करते वो अफ्रीका सैटल हो गये।

प्रशान्‍त किशोर की जिन्‍दगी काफी अच्‍छी चल रही थी। इस दौरान उन्‍होने शादी भी कर ली। वो अफ्रीका में अच्‍छा पैसा कमा रहे थे। सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन वो अपने काम से सैटिस्‍फाई नही थे। प्रशान्‍त को कुछ अलग करना था। वो अपने लिए रास्‍ते तलाश रहे थे कि कैसे कुछ ऐसा किया जाये जो दूसरे से एकदम अलग हो।

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मोदी को बनाया था ब्रांंड मोदी

बात 2011 की है। ये वो दौर था जब गुजरात में नरेन्‍द्र मोदी की सरकार थी। उनके गुजरात मॉडल की चर्चा देश भर में हो रही थी। वही केन्‍द्र में काबिज कांगेस की सरकार लगातार सवालों के निशाने पर थी। देश में कांग्रेस विरोधी लहर चलनी शुरू हो गई थी। नरेन्‍द्र मोदी को इस बात का आभास था और उन्‍होने गुजरात से निकलकर देश भर निकलने की तैयारी करनी शुरू कर दी थी। लेकिन उससे पहले उन्‍हे गुजरात चुनावों से निकलना था। गुजरात में 2012 में विधानसभा चुनावा होने थ। इन चुनावों में मोदी के भविष्‍य का फैसला होना था।

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ऐसे में प्रशान्‍त किशोर ने अफ्रीका से गुजरात सरकार को मॉल न्यूट्रिशन पर कुछ पेपर लिख कर सेंट किये। मॉल न्‍यूट्रिशियन पर लिखे इन पेपरों ने गुजरात सरकार को काफी ज्‍यादा प्रभावित किया। प्रशान्‍त किशोर को फिर गुजरात सरकार की तरफ से गुजरात में काम करने के लिए निमंत्रण आया। इस तरह प्रंशान्‍त किशोर गुजरात आकर मोदी सरकार के लिए काम करने लगे।

प्रशान्‍त किशोर ने गुजरात में अपने काम के दौरान सरकार में बैठे हुए बड़े बडे़ लोगो को प्रभावित किया। उनके काम से प्रभावित होने वालों में गुजरात सरकार के उस वक्‍त के सीएम नरेन्‍द्र मोदी भी शामिल थे। धीरे धीरे वो नरेन्‍द्र मोदी के खास होते चले गये। उन्‍होने नरेन्‍द्र मोदी के कई प्रोजेक्‍ट में काम किया जिनमें वाइब्रेंट गुजरात प्रमुख प्रोजेक्‍ट था।

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2012 के गुजरात विधान चुनावों में प्रशान्‍त किशोर ने बीजेपी को प्रंचड बहुमत से जीत दिलवाई। 2012 के बाद बारी थी 2014 के आम चुनावों की। बीजेपी की तरफ से नरेन्‍द्र मोदी पीएम पद की उम्‍मीदवार के लिए चुन लिये गये थे। उस वक्‍त तक चुनाव ज्‍यादातर सड़को पर लडा जाता था। प्रशान्‍त किशोर ने इन चुनावों में पहली बार सोशल मीडिया का इस्‍तेमाल बीजेपी की तरफ से किया। उन्‍होने बीजेपी के कैम्‍पेंन को इस तरह से बुना जिसमे देश की सारी पार्टिया फसती चली गई। बीजेपी को प्रचंड बहुमत से जीत नसीब हुई। देश को एक नया प्रधानमंत्री मिला और देश की राजनीति को मिला एक राजनीतिक रणनीतिकार प्रंशान्‍त किशोर।

प्रशान्‍त किशोर इसके बाद कुछ कारणों की वजह से बीजेपी से अलग हो गये। बीजेपी से अलग होने के बाद उन्‍होने जदयू का हाथ थामा। उनकी कम्‍पनी आईपैक ने 2015 में हुए बिहार चुनावों में जदयू के लिए इलैक्‍शन रणनीति बनाई। इन चुनावों में भी प्रशान्‍त किशोर को जबरदस्‍त सफलता हासिल हुई।

बाद में प्रशान्‍त किशोर राजनीति में भी आये। वो नीतिश कुमार की पार्टी जदयू में पार्टी उपाध्‍यक्ष के पद पर भी रहे। बाद में जब जदयू बीजेपी के साथ चली गई तो इसके कुछ दिन बाद उन्‍होने इस पद से इस्‍तीफा दे दिया।

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प्रशान्‍त किशोर पंजाब में कांगेस पार्टी और दिल्‍ली में आम आदमी पार्टी के लिए भी काम कर चुके है। इन दोनो ही चुनावों में उन्‍हे सफलता हासिल हुई है। उन्‍होने 2017 में यूपी में कांग्रेस पार्टी के लिए भी काम किया था। प्रशान्‍त किशोर ने कॉग्रेस पार्टी की कायाकल्‍प करने की प्‍लानिंग भी बना ली थी लेकिन अपने अडियल स्‍वभाव के चलते कांग्रेस पार्टी के कई बडे नेताओं ने उनकी बात मानने से इन्‍कार कर दिया था। जिसके नतीजे में कांग्रेस को यूपी में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था।

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