sir chhotu ram success story
देशभर के किसान अपने फसलों के उचित मूल्य लेने के खातिर दिल्ली की सरहदों पर डटे हुए है। इस किसान आदोंलन ने कई किसान नेताओं को किसानों का नायक (sir chhotu ram success story) बना दिया है। आज राकेश टिकैत किसानों के सम्मान और उनका गौरव बन चुके है।
आज के दौर के किसानों को उनका नायक मिल चुका है। लेकिन आज हम बात राकेश टिकेत की नही करेंगे। आज हम बात करेंगे किसानों के उस नायक की कि जिसने कर्ज और भुखमरी से जूझते किसानों सर उठा कर ना सिर्फ जीना सिखाया। बल्कि अपनी जिन्दगी में कुछ ऐसे कानून बना दिय कि जिससे किसानो कभी किसी का गुलाम नही बन पाये।

हम बात कर रहे है किसानो के उस मसीहा को जिसे लोग रहबरे आजम और दीन बंधू भी कहते है। हम जिस शख्सियत की बात कर रहे है। उसका नाम है सर छोटू राम।
सर छोटू राम (sir chhotu ram success story) रोहतक के सांपला में 24 नवम्बर 1981 को पैदा हुए। वो अपने पिता के सबसे छोटे बेटे थे। नाम था रिक्षपाल। अपने घर में सबसे छोटे होने की वजह से घरवाले इन्हे छोटू राम कहने लगे। छोटूराम के पिता बेहद गरीब किसान थे। जिन्हे विरासत में 10 बीघे की बजंर जमीन विरासत में मिली थी।
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उनके पास इतना पैसा नही था कि वो अपने बेटे का एडमीशन स्कूल में करा सके। घर की आर्थिक स्थिति दयनीय होने के चलते पढ़ने की तीव्र इच्छा होने के बावजूद छोटू राम का दाखिला तब स्कूल में हो पाया जब वो 10 साल के हुए। उनके पिता को अपने बेटे की पढ़ाई की खातिर कर्ज लेने के लिए एक साहूकार से कर्ज तक लेना पडा। स्कूल की पढाई को पूरा करने के बाद वो दिल्ली के क्रिश्चियन मिशन स्कूल में गये जहा के हॉस्टल काफी खस्ता हालतों में थे।

छोटू राम ने हास्टल की दिक्कतों के विरोध प्रर्दशन करने शुरू कर दिये। उन्होने अपने स्कूल के दूसरे छात्रों को भी हॉस्टल की साफ सफाई को लेकर जागरूक करना शुरू कर दिया। इस छोटे से क्रांन्तिकारी कदम ने उन्हे छात्रों के बीच जनरल राबर्ड के नाम से मशहूर कर दिया।
स्कूल की पढाई पूरी करने के बाद सर छोटी राम (sir chotu ram success story) ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से स्नातक की पढाई पूरी की और 1905 में एक अग्रेजी दैनिक अखबार में बतौर पत्रकार काम करने लगे। इस दौरान वो लगातार किसानों की दशा के बारे में सोचने और लिखने लगे।
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बाद में उन्होने वकालत की डिग्री भी ली और फिर 1912 में छोटूराम ने झज्जर में जाट सभा बनाई। वो गांधी जी से भी काफी ज्यादा प्रभावित रहे। लेकिन बाद में उन्होने गांधी से अलग अपना रास्ता चुन लिया। 1915 में छोटूराम वकालत छोडकर फिर पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गये। इस बार छोटूराम ने खुद का अखबार निकाला। इस अखबार का नाम था जाट गजट। ये अखबार आज भी हरियाणा के सबसे पुराने अखबारों में से एक अखबार है।
छोटूराम ने अपने अखबार में जोरदार तरीके से अग्रेजों और उनकी नीतिओं का मुखालफत करनी शुरू कर दी। जब ये बात अग्रेजों को पता चली तो अग्रेजों ने उन्हें देश निकालने का फरमान दे दिया। लेकिन तब तक छोटू राम किसानों के बीच इतने फेमस हो चुके थे कि अगर वो देश से निकाल दिये जाते तो पंजाब में दंगे हो सकते थे। इसी वजह से अग्रेजों को अपना ये तुगलकी फरमान वापस लेना पड़ा।
कुछ साल पत्रकारिता करने के बाद छोटू राम को ये बात समझ आ गई कि अगर व्याहारिक तौर पर किसानों के हालातों को बदलना है तो राजनीति में आना पड़ेगा। फिर क्या था छोटू राम राजनीति के मैदान में उतर गये। शुरूआत उन्होने कांग्रेस पार्टी से की। उन्होने रोहतक में कांग्रेस पार्टी का गठन किया।
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जब महात्मा गांधी ने असहयोग आदोंलन वापस ले लिया तो वो कांग्रेस पार्टी से हो गये। उन्होने अपने दोस्तो के साथ मिलकर अपनी एक अलग पार्टी बना ली। इस पार्टी का नाम था यूनियनिस्ट पार्टी।अपनी नई पार्टी के दम पर वो धीरे धीरे पंजाब प्रान्त के नेता बन गये। यूनियनिस्ट पार्टी छोटू राम और 1937 के प्रांतीय विधानसभा चुनावों के बाद विकास मंत्री बने. इसकी वजह से उन्हें दीनबंधु कहा जाने लगा.
किसानों के लिए हमेशा खड़े रहने वाले, भाई-भतीजावाद से दूर और राव बहादुर के साथ ही सर की उपाधि से सम्मानित छोटूराम को बतौर राजस्व मंत्री जितनी भी तनख्वाह मिलती थी, उसका बड़ा हिस्सा वो रोहतक के स्कूल को दान कर दिया जाता था.
छोटू राम (sir chotu ram success story) के जिस काम ने किसानों की दशा और दिशा को पूरी तरह से बदल कर रख दिया वो कुछ इस प्रकार है।
कर्जा माफी ऐक्ट 1934 (8 अप्रैल 1935)
इसके तहत अगर कर्ज के पैसे का दोगुना पैसा दिया जा चुका हो तो कर्ज माफ हो जाता था. दुधारू पशुओं की नीलामी पर भी रोक लग गई थी.
साहूकार पंजीकरण ऐक्ट – 1938 (2 सितंबर 1938)
इसके तहत कोई भी साहूकार बिना रजिस्ट्रेशन के किसी को भी कर्ज नहीं दे सकता था और न ही कोर्ट में केस कर सकता था.
गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी ऐक्ट 1938 (9 सितंबर 1938)
इस कानून के तहत 8 जून 1901 के बाद कुर्क हुई जमीनों को किसानों को वापस दिलवाया गया.
कृषि उत्पाद मंडी ऐक्ट 1938 (5 मई 1939)
छोटूराम ने मार्केट कमिटियों को भी बनाया, जिससे किसानों को उनकी फसल का अच्छा पैसा मिलने लगा. आढ़तियों के शोषण से मुक्ति मिल गई.
व्यवसाय श्रमिक ऐक्ट 1940 (11 जून 1940)
इस कानून के तहत मज़दूरों को सप्ताह में 61 घंटे और एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता था. इसके अलावा साल में 14 छुट्टियां और 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराए जाने का भी नियम बना था.
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इशात जैदी एक लेखक है। इन्होने पत्रकारिता की पढाई की है। इशात जैदी पिछले कई सालों से पत्रकारिता कर रहे है। पत्रकारिता के अलावा इनकी साहित्य में भी गहरी रूचि है।