Tirange ka itihas kya hai, आजादी के इस अमृत महोत्सव के मौके पर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक तिरंगा इतिहास की यात्रा पूरी करते हुए हम तक कैसे पहुचा। हमारे तिरंंगे का इतिहास क्या है। तिरंगा को डिजाइन किसने किया। सबसे पहले तिरंगा कहा और किसने फहराया। अगर आपके मन में भी भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को लेकर इस तरह के सवाल है। तो ये लेख खास आपके लिए है। इस लेख में हम आपको तिरंगे के पूरे इतिहास (history of tricolour and national flag) के बारे में विस्तार से बताने वाले है। तिरगें के पूरे इतिहास के बारे में विस्तार से जानने के लिए इस लेख को पूरा जरूर पढ़े।
Tirange ka itihas kya hai
आज जो तिरंगा हमे दिखाई देता है उसकी विकास यात्रा अग्रेजो के समय से ही शुरू हो गई थी। अग्रेजो के आने से पहले अखंड भारत के पास कोई ऐसा राष्ट्रीय झन्डा नही था। जिसे पूरे राष्ट्र का प्रतीक माना जा सके। अग्रेजो के आने से पहले भी कई सम्राज्य ऐसे हुए जिनकी भारत के एक बड़े भू-भाग पर हुकूमत रही। आज से तकरीबन 2 हजार 300 वर्ष पहले मौर्य साम्राज्य का अधिकार लगभग पूरे भारत पर था। लेकिन मौर्य साम्राज्य के तौर में भी कोई ऐसा राष्ट्रीय ध्वज नही था। मौर्य साम्राज्य के बाद 17 वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य का अखंड भारत के काफी बड़े हिस्से पर काबिज था। लेकिन मुगल काल के तौर में कोई राष्ट्रीय ध्वज था। इस बात का भी कोई प्रमाण नही मिलता।
आजाद भारत से पहले भारत में तकरीबन 562 रियासते थे जिनके अपने झन्डे हुआ करते थे। अग्रेजी हुकूमत वाले गुलाम भारत में जो अग्रेजो का झंंडा था वो union jack से प्रभावित था। जो कि एक तरह से गुलामी का ही प्रतीक था। ब्रिटिश भारत के इस झन्डे का भारत की एकता और सस्कृति से कोई सम्बन्ध नही था।
जब भारतीय नागरिको पर अग्रेजी हुकूमत का अत्याचार बढने लगा तो देश के कई क्रांन्तिकारी अग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खड़े हो गये। 20 वीं शताब्दी में जब देश के क्रांन्तिकारी नेता आजादी के लिए आंदोलन करने लगे तो एक ऐसे स्वदेशी झन्डे की जरूरत महसूस होने लगी। जो बाटो और राज करो की अग्रेजो की नीति की वजह से आपस में ही लड़ने लगे थे। इसीलिए अपने देश के लोगो को अग्रेजाे के खिलाफ एकजुट करने के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज की बहुत ज्यादा जरूरत थी। इसी जरूरत की वजह से तिरंगे बनने की कहानी की शुरू आती है।
1904 : भारत का पहला झन्डा
1900 में आजादी के राष्ट्रीय आदोलन का दौर आया। तब एक ऐसे स्वदेशी राष्ट्रीय झन्डे की जरूरत महसूस हुई जो समस्त देश वासियो को एक साथ जोड सके। इसी बात को ध्यान में रखते हुए स्वामी विवेकानन्द की शिष्ट और आयरलैंड की महिला सिस्टर निवोदिता को ऐसे झन्डे के ऊपर काम करने लगी। जो भारतीय की राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन सके। जब सिस्टर निवोदिता बोधगया गई तो उन्हे वहा एक वज्र दिखाई दिया। इस वज्र को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करते हुए उन्होने एक झन्डा डिजाइन किया। भारतीय राष्ट्रीय आदोंलनो के इस पहले झन्डा लाल रंग का हुआ करता था जिसको किनारो पर सफेद रंग के 101 जलते हुए दीप बने हुए थे। इस पहले झन्डे के बीचो बीच वज्र बना हुआ था जो शक्ति का प्रतीक था। इस लाल रंग के झन्डे के बीच में पीले रंग बंगाली भाषा में वन्दे मातरम् भी लिखा हुआ था। ये झन्डे का डिजाइन सिस्टर निवोदिता ने बनाया था इसलिए शुरूआत में इस झन्डे को सिस्टर निवोदिता का झन्डा भी कहा जाता था। सिस्टर निवेदिता के मुताबिक उनके झन्डे का लाल रंग आजादी की लडाई का और सफेद रंग विजय का प्रतीक था।

1905: भारत का दूसरा झन्डा
1905 आते आते अग्रेजी हुकूमत पूरी तरह से बाटो और राज करो की नियति पर उतर आई थी। 1857 के गदर के बाद इस हुकूम को समझ में आ गया था कि अगर भारत में रहने वाले लोग एक हो गये। तो उनका भारत राज करना असंभव हो गया। भारतीय को धर्म और जाति में बाटने वाली इसी नीति के तहत ब्रिटिश हुकूमत ने 1095 में धर्म के आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया। बंगाल के क्रान्ति ये सब देख रहे थे। इन क्रांन्तिकारियो ने तय कर लिया कि वो हर हाल में अग्रेजी हुकूमत के इस फैसले का विरोध करेंगे।
बंंगाल और देश भर के लोगो को एकजुट करने के लिए बंगाल के क्रांन्तिकारिया ने एक झन्डा डिजाइन किया। इस झन्डे को डिजाइन करने वाले बंगाल के क्रांन्तिकारी सुरेन्द नाथ बर्नजी था। ये दोनो क्रांन्तिकारी थे जिन्होने 1906 में अपने झन्डे का डिजाइन बनाया था।
भारत के इस पहले तीन रंग वाले झन्डे में सबसे ऊपर वाला रंग केसरिया था जिसके अन्दर आठ कमल बने हुये थे। इस झन्डे के बीच में पीला रंग थे जिसके अंन्दर नीले रंग से वन्दे मातरम् लिखा हुआ था। झन्डे के सबसे नीचे हरा रंग था जिसमें एक तरफ चन्द्रमा तो दूसरी तरफ चांद तारा बना हुआ ळाा।
इस झन्डे को क्रांन्तिकारियो ने इस लिए बनाया था ताकि बंगाल में रहने वाले हिन्दू और मुसलमानो को एक किया जा सके। भारत के पहले इस तीन रंग के झन्डे को सबसे पहली बार 7 अगस्त 1906 में कलकत्ता के पारसी बगाल चौक यानि कि ग्रीन पार्क में फहराया गया था।
आजादी की लडाई के इस बेहद खतरनाक दौर में इस झन्ड का इस्तेमाल गदर पार्टी के क्रांन्तिकारी अपनी क्रांन्तिकारी गतिविधियों के दौरान किया करते थे।

1907: भारत का तीसरा झन्डा
भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के बनने का तीसरा पड़ाव 1907 में आया। 1907 में आजादी के आंदोलन की एक क्रान्तिकारी मैडम भीखाजी कामा ने एक नये झन्डे को डिजाइन किया। तीन रंगो का वाला ये झन्डा हमारे देश के पहले राष्ट्रीय ध्वज के सामान ही था। मैडम भीखाजी कामा के इस झन्डे के सबसे ऊपर केसरिया रंग था जिसके अन्दर
भारत के दूसरे झंडे को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ कुछ क्रांतिकारियों की ओर से फहराया गया था. यह हमारे पहले ध्वज के ही समान था, लेकिन इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था और सात तारे थे। ये सात तारे सप्तऋषि का प्रतीक थे। मैडम भिखाजी कामा ऐसी पहली भारतीय थी जिन्होने विदेश में जाकर भारतीय झन्डा फहराया था। उन्होने अपना ये झन्डा बर्लिन में हुए एक सामाजवादी सम्मेलन में फहराया था।

1917: भारत का चौथा झन्डा
भारत का चौथा झन्डा तब वजूद में आया जब 1917 में डॉ एनी बेसेंट और लोकमान्य बाल गंंगाधर तिलक अग्रेजी हुकूमत से होमरूल की मांग के लिए आंदोलन कर रहे थे। इस झन्डे को 1907 में डॉ एनी बेसेन्ट और लोकमान्य तिलक ने अपने आंदोलन के दौरान फहराया था। गुलाम भारत के ये झन्डा अग्रेजी हुकूमत में ही होमरूल की मांग करने के लिए उठा था। इसलिए इस झन्डे में अग्रेजी झन्डे को भी शामिल किया गया था। भारत के इतिहास के इस चौथे झन्डे में 5 लाल और 4 हरे की पट्टिया थी। इस झन्डे में लाल और हरे रंग की पट्टियो के बीच सात तारे और एक चांद तारा भी बना हुआ था।

1921: भारतीय इतिहास का पांचवा झन्डा
भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा बनने की ये विकास यात्रा लगातार आगे बढ़ती गई। 1917 के बाद आया 1921। इस साल महात्मा गांधी के एक शिष्य पिंगाली वेंकैया ने 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वज की स्टडी की। फिर अपनी इस स्टडी के बाद उन्होने 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कॉग्रेस के सम्मेलन में राष्ट्रीय ध्वज के बारे में अपनी संकल्पना जाहिर की। उन्होने जिस भारतीय झन्डे का सुझाव दिया था। उसमे दो रंग थे। एक लाल रंग था तो दूसरा हरा। ये दो रंग भारत में रहने वाले दो बड़े समुदायो हिन्दू और मुसलमानो का प्रतिनिधित्व करते थे। दूसरे धर्म के लोगो को प्रतीक के रूप में शामिल करने के लिए महात्मा गांधी ने इस झन्डे में सफेद पट्टी को शामिल करवाया। इसके बाद लाला हसंराज की सिफारिश पर इस झन्डे के बीच एक झरखा भी जोड दिया गया। इस झन्डे में चरखे को प्रगतिशीलता का प्रतीक बताया गया।

1931:भारतीय इतिहास का छठा झन्डा
1921 में डिजाइन किया गया भारतीय राष्ट्रीय ध्वज 10 साल तक वजूद में रहा। 1931 में इस झन्डे के रंगो में परिवर्तन किया गया।
इसमे सबसे ऊपर के सफेद रंग की जगह उस रंग को केसरिया कर दिया गया। सफेद रंग को एकदम बीच में और हरे रंग को झन्डे में सबसे नीचे कर दिया गया। इस झन्डे में चरखे में सफेद रंग के बिल्कुल बीच में लगाया गया। 1931 में इस झन्डे को इंडियन नेशनल कॉग्रेस ने औपचारिक रूप में अपना लिया।

22 जुलाई 1931 को मिल गया हमे अपना राष्ट्रीय ध्वज
15 अगस्त 1947 को जब भारत अग्रेजो की गुलामी से आजाद हो। तो 1931 में बने झन्डे में ही एक बदलाव करके इस झन्डे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपना लिया गया। इस झन्डे के सफेद रंग के बीच में जो चरखा था उसे हटाकर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को लगा दिया गया। झन्डे में 24 तीलियो वाले इस अशोक चक्र को गहरे नीले रंग से दिखाया गया।

तिरंगे में मौजूद तीन रंगो का मतलब क्या है
हमारे तिरंगे में सबसे ऊपर केसरिया बीच में सफेद और सबसे नीचे गहरा हरा रंग होता है। इसके अलावा तिरंगे में बीच के सफेद रंग के बीचो बीच नीले रंग का अशोक चक्र होता है जिसमें 24 तिल्लियां होती है। इन तीनो रंगो और इस अशोक चक्र का मतलब क्या होता है। आइये जानते है।
- केसरिया रंग- तिरंगे झन्डे के सबसे ऊपर मौजूद केसरिया रंग त्याग और बलिदान का प्रतीक है।
- सफेद रंंग- तिरंगे झन्डे के बीच में मौजूद सफेद रग शांति एकता और सच्चाई का प्रतीक है।
- हर रंग- तिरंंगे झन्डे के सबसे नीचे मौजूद हरा रंग विश्वास और उर्वतरा का प्रतीक है।
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इशात जैदी एक लेखक है। इन्होने पत्रकारिता की पढाई की है। इशात जैदी पिछले कई सालों से पत्रकारिता कर रहे है। पत्रकारिता के अलावा इनकी साहित्य में भी गहरी रूचि है।