इतिहास के साक्ष्यो के अनुसार इस जगह पर पहली मंदिर का निर्माण वैन्यगुप्त के शासनकाल में 500-508 ईसवी में हुआ
इस बात की तस्दीक 635 ईसवी में भारत यात्रा पर आये एक दूसरे चीनी नागरिक हे्न सांग की किताब से होती है
वो मंदिर पूरी तरह से नही तोड़ पाया। फिलहाल काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का ये पहला प्रयास था
इसके बाद जब 1230 में शम्सुद्दीन इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत पर काबिज हुआ तो उसने काकाशी विश्वनाथ मंन्दिर का पुनर्निमाण करवाया
सन 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह तुर्की ने एक बार फिर मन्दिर को तोड़ दिया
सन 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह तुर्की ने एक बार फिर मन्दिर को तोड़ दिया
सन 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह तुर्की ने एक बार फिर मन्दिर को तोड़ दिया
महमूद शाह शर्की के बाद काशी विश्र्वनाथ मन्दिर को 1585 में मुगल बादशाह अकबर के समय में राजा टोडरमल दोबारा से बनवाया
लेकिन अकबर के बाद जब 1632 में शाहजाह का वक्त आया तो उसने इस मन्दिर को तोड़ने के लिए एक आदेश पारित कर दिया
हिन्दू पक्ष ये दावा करता है कि तभी मन्दिर को तोड़कर उसके मलवे से ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई।