आज हम आपको हजरत अली (who is hazrat ali) के बारे में बताने वाले है
हजरत अली के नाम से कौन वाकिफ नही है। जब भी हजरत मोहम्मद साहब की बात होती है, हजरत अली का नाम लोगो की जबान पर अपने आप ही आ जाता है। हजरत अली इस्लाम के उस लीडर का नाम है जो काबा में पैदा हुऐ। वही काबा जिसे मुसलमान दुनिया की सबसे पवित्र जगह मानते है।
हजरत की जिन्दगी की शुरूआत 600 ईसवी के आस पास हुई। उर्दू कलेन्डर के हिसाब से उनका जन्म सातवे महीने की 13 तारीख को हुआ। ये रजब का महीना था जब वो पैदा हुऐ थे। ऐसा माना जाता है कि जब उन्हे प्रसव पीड़ा का एहसास हुआ तब उनकी मां फातिमा बिन्ते असद काबे के आसपास ही थी।

वो ये कहते हुए काबे की तरफ भागी कि ऐ अल्लाह तुझे उसी पैगम्बर की कसम है, और तुझे मेरे गर्भ में पल रहे बच्चे की कसम है। मेरे प्रसव को मेरे लिए आसान बना दे। ये कहते हुए हजरत अली की मां फातिमा बिन्ते असद काबे के दरवाजे पर आई तो दरवाजे पर ताला लगा हुआ था।
फातिमा बिन्ते असद ने देखा कि काबे की दीवार अचानक खुद ब खुद कटना शुरू हो गई है। दीवारो ने खुद को काटकर फातिमा बिन्ते असद के लिए अन्दर आने का रास्ता खोल दिया। फातिमा बिन्ते असद काबे के अन्दर आई। उनके अन्दर आते ही कटी हुई दीवार दोबारा जुड गई।
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लोगो ने जब ये सुना तो उन्हे यकीन नही हुआ। हजारो की सख्या में लोग काबे के बाहर जमा होने लगे। लोगो ने काबे के गेट को देखा तो उसमे ताला लगा हुआ था। जब काबे के गेट में लगे ताले को तोड़ा गया तो अन्दर से फातिमा बिन्ते असद अपने हाथ अपने छोटे से बच्चे को लेकर बाहर निकली।
इस तरह काबे के अन्दर हजरत अली का जन्म हुआ। जब हजरत अली पैदा हुए थे उस वक्त मोहम्मद साहब की उम्र 28 साल की हो चुकी थी। पैगम्बर मोहम्मद साहब साहब हजरत अली के काफी करीब थे।
हजरत अली का एक नाम हैदर भी है जो उनकी मां ने रखा था। इस्लाम के शुरूआती दिनो में जब पूरी मक्का मोहम्मद साहब को अल्लाह का पैगम्बर मानने से इन्कार कर रही
थी। सिर्फ हजरत अली ही थे जो पूरी सच्चाई के साथ मोहम्मद साहब के साथ खड़े हुए थे।
हजरत मोहम्मद पैगम्बर साहब को जब भी कभी किसी सच्चे साथी की जरूरत पड़ी। हजरत अली हमेशा उनकी मदद को हाजिर रहे। बाद में हजरत मोहम्मद ने अपनी बेटी फातिमा जहरा की शादी हजरत अली से करवाई। इस तरह हजरत अली हजरत पैगम्बर मोहम्मद साहब के दामाद भी बन गये।

हजरत अली ने हजरत मोहम्मद के साथ मिलकर कई इस्लामिक जंगे लड़ी। उनकी बहादुरी के बारे में ये मशहूर है कि हर कोई उनका नाम सुनकर ही कॉप जाता था। हजरत अली ने उस वक्त के नामी पहलवानों धूल चटा दी थी। इन पहलवानों ने मरहब और अंतर का नाम प्रमुख रूप से इस्लामी इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
हजरत अली के जन्म का किस्सा जितना दिलचस्ब है। उनकी इस दुनिया से रूख्सत होने की कहानी भी उतनी ही मार्मिक है। रमजान की 19 तारीख था। रोज की तरह हजरत अली सुबह की नमाज पढाने के लिए मस्जिद पहुंचे थे। जब वो मस्जिद पहुंचे तो उन्होने देखा कि एक आदमी मूह के बल मस्जिद में लेटा हुआ है। ये आदमी अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम था। हजरत अली ने इस आदमी को जगाया और खुद नमाज पढाने के लिए खड़े हो गये
जैसे ही हजरत अली नमाज पढाने के लिए खडे हुए। मस्जिद के एक खम्भे के पीछे जहर में डूबी तलवार लेकर छिपे इब्ने मुल्जिम बाहर आया और सजदे में सिर छुकाये हजरत अली के सिर पर उस तलवार से वार कर दिया। तलवार की धार हजरत अली के दिमाग तक उतर गई। तलवार पर लगा जहर उनके जिस्म तक पहुंच गया। इस तरह काबे में विलादत करने वाला इस्लामिक जगत का ये महान योद्धा मस्जिद में शहीद कर दिया गया।
हज़रत अली के मशहूर कोट
- अगर इन्सान को तकब्बुर (घमंड) के बारे में अल्लाह की नाराज़गी का इल्म हो जाए तो बंदा सिर्फ फकीरों और गरीबों से मिले और मिट्टी पर बैठा करे.
- लफ्ज़ आपके गुलाम होतें हैं, मगर सिर्फ बोलने से पहले तक, बोलने के बाद इन्सान अपने अल्फाज़ का गुलाम बन जाता है, अपनी ज़बान की हिफाज़त इस तरह करो, जिस तरह तुम अपने माल की करते हो. एक शब्द अपमान कर सकता है और आपके सुख को ख़त्म कर सकता है.
- भीख मांगने से बदतर कोई और चीज़ नहीं होती है.
- बात तमीज़ से और एतराज़ दलील से करो, क्योंकि जबान तो हैवानों में भी होती है, मगर वह इल्म और सलीके से महरूम होते हैं.
- अपनी सोच को पानी के कतरों से भी ज्यादा साफ रखो क्योंकि जिस तरह कतरों से दरिया बनता है उसी तरह सोच से ईमान बनता है.
- चुगली करना उसका काम होता है जो अपने आप को बेहतर बनाने में असमर्थ होता है.
- कभी भी कामयाबी को दिमाग में और नाकामी को दिल में जगह न देना, क्योंकि कामयाबी दिमाग में तकब्बुर (घमंड) और नाकामी दिल में मायूसी पैदा कर देती है.
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